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कुमारपाल प्रतिबोधे
[ द्वितीयः
एवं करेमि त्ति पडिवन्नं तीए । जाया सा कवड-साविगा । वेत्तृण सत्थं गया
परलोय -
तत्थ । सविणयं वंदिऊण समणं जंपिउं पवत्ता- गए नाहे जिणभवणारं नमसमाणाहं । सोऊण तुमं तुह वंदणत्थमित्थागया भयवं ! ॥ ता अज्ज दिणं सहलं जं दिट्ठो जंगमं तुमं तित्थं । संपइ कुणसु पसायं मह मुणिवर ! गिहिउं भिक्खं ॥ लब्भंति पुन्न-वसओ जम्हा तुम्हारिसाई पत्ताई । किं होइ कणय- वुट्ठी घरंगणे पुण्ण-रहियस्स ? ॥ एवं भणिओ सो कूलवालओ जाईं गिव्हिडं भिक्खं । तो दुङ- दव्व- मिस्सा दिन्ना से मोयगा तीए ॥ मोयग भोगानंतरमुप्पन्नो तस्स दृढमईसारो । उव्वत्तणं पि काउं न तरइ तेणाबलो एसो ॥ भइ मुणि मागहिया हहा ! मए पाडिओ तुमं कट्टे । पावाहं तुह संपइ पडियारं काउमिच्छामि ॥
तं अणुजाणह अह फासुगेहिं दव्वेहिं मे कुणंतीए । जइ होज को वि दोसो करेज आलोयणं तस्स ॥ जओ
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सव्वत्थ संजमं संजमाउ अप्पाणमेव रक्खंतो । मुच्चइ अइवायाओ पुणो विसोही नयाविरई ॥ एवं पन्नविओ सो तीए सिद्धंत सुत्त जुत्तीहि । तं अणुमन्नइ मूढो वेयावच्चं विरइमाणिं ॥ तो उव्वत्तण-धावण-निसियावण- पमुह सव्व-किरियाओ । कुणइ समीव-ठिया सा निरंतरं तस्स परितुट्ठा ॥ इय कवय-दिहाई पडियरिडं ओसह - प्पओगेण । पगुणी कुणइ सरीरं मागहिया तस्स समणस्स ॥ अमरि व्व मणहरंगी पयडिय - सव्वंग चंग- सिंगारा । सविलास -हासमेसा कयाइ समणं इमं भणइ ॥ किं दुक्करेण इमिणा सत्तुं व तवेण तवसि अत्ताणं । सुहय ! सुहेक्क-निहाणं मं सेवसु गाढमणुरतं ॥ जइ पाण-नाह ! इमिणा तवेण तियसंगणाओ पत्थेसि
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