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कुमारपाल प्रतिबोधे
[ द्वितीयः
पुब्व-कय- संकेया सोहम्मिंदो चमरिंदो य दोवि समीवमागया, भांति कूणियं - भो नरिंद ! कहसु, किं ते पियं करेमो ? रन्ना भणियं - विणासेह चेडयं । तेहिं जंपियं परम- सम्मदिट्ठि चेडयं कहं विणासेमो ?, तुज्झ पुण जुज्झतस्स पाणे रक्खेमो । रन्ना भणियं - एवं होउ । तओ कूणिओ चेडगेण समं समरसंरंभ करेइ । चमरिंद - विहिएहिं रह - मुसलसिला - कंटक - संगामेहिं पडिवक्खपक्वं विक्खिवंतो ' पत्तो चेडग- समीवं । चंड-भुयदंड - कुंडलिय- चावेण चेडगेण मुको कर्यंत दूओ व्व कूणियं पडुच्च बाणो । सो य अंतरा रहऊण फलिह-सिलं पडिक्खलिओ सक्केण । तं दद्दूण चिंतियं चेडगेण - नूणं खीणो मे पुन्न- पसरो जं पडिक्खलिओ अमोहो सरो, ता न जुज्जइ अओ परं जुज्झिउं ति पविट्ठो पुरीए वेसालीए चेडगो ।
तं कूणिओ निरंभिय चिह्न सा तह वि तुंग-पायारा । न परेण अक्कमिज्जइ नारि व्व विसुद्ध - सील-गुणा ॥ हल्ल-विहल्ला चडि सेयणगे निसि हणंति पर चक्कं । तो भइ कूणिओ-भो ! किमत्थि एसिं जयोवाओ ? ॥ जंपंति मंतिणो सेयणग-हणणओ नावरो जयोवाओ। रन्ना वृत्तं - एयं पि कुणह, तो मंतिणो मग्गे ॥ अंगार - खाइयं कारवंति छन्नं तमोहिणा मुणिउं । तत्थ न हत्थी वच्चइ, कुमरा कुविया करिं बिंति ॥ पसुओसि तुमं अम्हेहिं तुह कए अज्ज - चेडगो एवं । वसणन्नवम्मि खित्तो, तुमं पि न चलसि वसण - भीरू ॥ इय तोरविओ हत्थी कुमरे उत्तारिऊण खंधाओ । अंगार - खाइयाए पडिऊण मओ गओ नरयं ॥ करि-मरण दूमिय-मणे कुमरा विस-विसम-विसय-निव्विन्ना । नीया जिणपासे देवयाइ गिण्हंति दो वि वयं ॥ अन्नया अच्चंत - चिंता - पवन्नस्स कूणियस्स पढियं देवयाएसमणे जइ कूलवालए मागहियं गणियं लगिस्सए । लाया य असोयचंदए वेसालिं नगलिं गहिस्सए |
तं सोऊण भणियं रन्ना - भो ! को एसो कूलवालगो ? मुणिय-वृत्तंतेण केणावि कहियं - देव ! चत्त- सव्व-संगा हियय-भंतर- फुरंत - बारसंगा संगमसीहा नाम आयरिया । बहु- सीस-परिवाराण ताण एक्को सीसो तिव्व
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