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प्रस्तावः] गुरुविराधनायां कूलवालकथा ।
१५९ देवीए चेल्लणाए आसोयचंदो त्ति अत्थि जेट्ट-सुओ। तह अन्ने दुन्नि सुआ हल्ल-विहल्ल त्ति विक्खाया। अन्नासिं देवीणं पुत्ता कालाइया तहा बहवे । जिण-पूयण-प्पहाणो परिपालइ सेणिओ रजं ॥ अभओ पुच्छइ सामि-को राय-रिसीय पच्छिमो भयवं!। उद्दायणो जिणेणं रायरिसी पच्छिमो कहिओ॥ एत्तो परं नरिंदा न बद्ध-मउडा वयं गहिस्संति । तो वय-विग्घ-भएणं अभएण न इच्छियं रजं ॥ तो सेणिएण अभओ भणिओ तुमए मए अमुक्केण ।
दिक्खा न गिण्हियव्वा तह त्ति अभएण पडिवन्नं ॥ अह सिसिर-पवण-कंपंत-गत्त पिक्खेविणु भुवणि समत्त-सत्त। वियसंत-कुंद-कलिया-मिसेण जो हसइ गरुय-विम्हय-वसेण ॥ हिम-पीडिय-पंथिय जहिं असेस भुय-मंडल-भीडिय-हियय-देस । निय-कंत निच्चु मणि निवसमाण पडिहासहिं नं परिरंभमाण ॥ जहिं तरुणिहिं घण-घुसिणंगराओनिम्मविओ सीय-संगम-विधाओ। मण मज्झि अमंतु पियाणुराओ नं निग्गओ बाहिरि निव्विवाओ॥ संताव-कर वि जहिं जलह जलणु हिम-पीडहरो त्ति पमोय-जणणु । जं कहवि अणि वि होइ इह सियवाओ जिणिदिहिं तेण दिट्ठ॥
तम्मि सिसिरे पयट्टे वीरजिणं वंदिलं चरम-जामे । सह सेणिएण भवणे संचलिया चेल्लणा-देवी॥ काउस्सग्गोवगयं गिरि-नइ-कूलम्मि पेच्छिउं समणं । चिंतइ कहं महप्पा गमिही रयणिं निरावरणो ॥ सुत्ता निसाइ एसा पासाए मणिमयम्मि पल्लंके । अह कहवि करो तीए विणिग्गओ आवरण-बाहिं ॥ सीएण पीडिए तम्मि जग्गिया भणइ चेल्लणा देवी। सो कह रयणिं गमिहि त्ति सेणिओ सुणइ वयणमिणं ॥ नूणं कय-संकेया कस्स वि एसा जमेवमुल्लवइ । इय चिंतिऊण कुविओ गोसे अभयं भणइ एवं ॥ अंतेउरं समग्गं दहसु त्ति सयं गओ जिण-सयासं। नमिऊण सेणिय-निवो कयंजली पुच्छए एवं ॥
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