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कुमारपालप्रतिबोधे
दिट्ठा मुणि-कलिएणं गुरुणा विमलोहि-नाण-जुत्तेणं । भणिया किमकज्जमिणं मुद्धे ! काउं ववसियासि ॥ जम्हा दुहं न पिट्ठि मुयइ मयाणं पि अकय-धम्माणं । ता मुत्तुं मरणमई दुह - विगम - कए कुणसु धम्मं ॥ कम्मरीए य सुयं कुर्डुतरियाए रुद दुच्चरियं । दहुं कयत्थणं तुह तं कहियं तीए तुह पइणो ॥ सो पच्छायाव - हओ कमेण एही तुमं गवेसंतो । तो मरण-मई मुत्तुं लच्छी पडिवज्जए घम्मं ॥ अह केसवो विपत्तो खमाविडं नेइ निय-गिहं लच्छि । उभय-भव-सुक्ख-जणगे गुरुम्मि सा वहइ बहुमाणं ॥ गुरुणा अहं मरंती निवारिया कारिया य जिण धम्मं । तो मज्झ दो वि लोगा सहला जाय त्ति चिंतेइ ॥ वर- वत्थ- पत्त-भत्तोसहाई निचं गुरूण सा देइ । जिण - धम्म - परा मरिडं पत्ता सोहम्म-सुरलोयं ॥ तत्तो चविऊण इमा सिरित्ति नामेण तुह पिया जाया । तो जाय-जाइसरणा भणइ सिरी सचमेयं ति ॥ अह जाय जुग्ग- पुत्ता गिहत्थ धम्मं सिरी चिरं काउं । पत्ता सणकुमारं महाविदेहम्मि सिज्झिहिई |
इति गुरुसेवायां लक्ष्मीकथा |
तविओ वि तवो तिव्वो चिर-कालं सेविओ वि वण-वासो । इह कूलवालयस्स व विहलो गुरु-भत्ति - रहियस्स ॥
रन्ना भणियं - को इमो कूलवालो ? । गुरुणा भणियं सुणकेणावि अकय - रोहस्स जस्स पुरओ सुरोह - कलियं ति । अमरपुरं पि वरायं रायगिहं अत्थि तं नयरं ॥ तत्थ नरिंदो नामेण सेणिओ जस्स धाउणो सत्त । जिण - वयण-निग्गएहिं सत्तहि तत्तेहि संभिन्ना ॥ तरस य नंदा देवीइ अंगओ संगओ गुरु-गुणेहिं । पुत्तो अभय कुमारो जिण धम्म- पभावणा- सारो ॥
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[ द्वितीय:
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