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[द्वितीयः
कुमारपालप्रतिबोधे अह समयम्मि पसूया सुजसा धूयं धरा-तिलय-भूयं । आणंदिय-सयल-जणं सज्जण-जीह व्व महुर-गिरं ॥ परिओस-परवस-मणो वद्धावणयं करावए सेट्टी। नहि सुकय-सहायाणं जीवाण असंभवं किं पि॥ जं सुविणयम्मि दिट्ठा सुजसाए सिरी अओ विभूईए । मासम्मि गए जणओ सिरि त्ति नामं कुणइ तीए ॥ बाला लहेइ वुद्धिं कमेण मण-वंछियत्थ-जोगेण । कित्ति व्व गुण-कलावेण सुयण-संगेण सुमइ व्व ॥ लिवि-गणिय-प्पमुहाहिं कलाहिं सालंकिया सहीहिं व । एईऍ उवज्झाया संजाया सक्खिणो च्चेय ॥ जिणधम्मे पडिवत्ती इमीऍ मूलाओं चेव जं जाया। तत्थ निमित्तं पुन्नोदएण सावय-कुलुप्पत्ती॥ सज्झायं पढइ सुणेइ तस्स अत्थं गुरूण पय-मूले। पुज्जेइ जिणे ढोएइ ताण पुरओ विचित्त-बलिं ॥ साहूण देइ दाणं कारेइ साहम्मियाण वच्छल्लं । कम्मप्पयडि-धियारे दुरवगमे कहइ अन्नेसिं ॥ देव-गुरूणं गुण-कित्तणेण लोयाण कुणइ धम्म-मई। इय बहु-विह-कीलाहिं बालत्तं गमइ सा बाला ॥ अन्न-दिणे जिणदत्तो दिट्ठो चिंता-परायणो तीए । तो पुच्छिओ किमेवं ताय ! तुमं चिट्ठसि विसन्नो ? ॥ जणओ जंपइ वच्छे ! रायउले राय-अग्गओ मज्झ । विणिविट्ठस्स सहाए पडिहार-निवेइओ पत्तो॥ फल-पुप्फ-करो पुरिसो रायाणं पणमिऊण विन्नवइ । अस्थित्थ जय-सिद्धो गामो सिद्धावहो नाम ॥ तत्थासि गिहत्थो पाव-कम्म-विमुहो विसुद्ध-ववहारो। विसयासत्ति-विमुक्को धम्म-परो धम्मदेवो त्ति ॥ तस्स सुओऽहं मुद्धो न तारिसो जारिसो पिया मज्झ । नणु कारणाणुरुवं कजं ति कयं मए वि तहं ॥ अन्न-दिणे पवणाहय-धयग्ग-तरलत्तणेण भावाणं । परलोय-पत्थिएणं पिउणा मह एयमुवइह ॥
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