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प्रस्तावः ]
गुरुसेवायां लक्ष्मीकथा सोहम्मकप्प-तिलयम्मि सूरियाभे सुरो विमाणम्मि । सूरु व्व भासुरो सो संजाओ सूरियाभो त्ति ॥ पलिओवमाइं चत्तारि आउयं तत्थ पालिही एसो। तत्तो चुओ समाणो महाविदेहम्मि सिज्झिहिइ ॥
इति गुरुसेवायां प्रदेशिकथा । कजाकज-पयासण-निउणस्स गुरुस्स देसणं सुणिउं।
जीवो पाव-विमुक्को पावइ लच्छि व कल्लाणं॥ रन्ना भणियं-भयवं! का एसा लच्छी? गुरुणा वुत्तं-महाराय ! सुण,
अत्थित्थ भरह-खित्ते नयरं नामेण जयपुरं पवरं । जं सुरपुरं व बहु-विबुह-संकुलं केवलमणिंदं ॥ तत्थ नरसुंदरो नाम नरवई मंदरो व्व वर-कडओ। पर-बल-जलहिं महिऊण जेण आयड्डिया लच्छी॥ तस्सत्थि माणणिज्जो समग्ग-नायर-जणाभिगमणिज्जो । देव-गुरु-चलण-भत्तो सेट्टी नामेण जिणदत्तो ॥ तस्स नयस्स व लच्छी धम्मस्स व सव्व-सत्त-अणुकंपा। सुजसा नाम सहयरी निम्मल-गुण-लड-सुड-जसा ॥ पुव्व-भवारोविय-सुकय-कप्प-तरुणो फलं व मण-इहूँ । विसय-सुहं सेवंताण ताण कालो अइक्कंतो ॥ अन्न-दिणे सुजसाए निसाए सुत्ताए सुविणए दिहा। हिमवंत-महापव्वय-पउमद्दह-वासिणी देवी ॥ नामेण सिरी गेहं समागया जाव जग्गिया सुजसा । परितुट्ठ-मणा तं कहइ सेट्टिणो सो भणइ एवं ॥ तणुयंगि ! तुज्झ तणया पुन्निक-निही गुणुत्तमा होही । तं बहुमन्नइ सुजसा हरिसेण समं वहइ गभं ॥ गन्भ-पभावेण इमा सविसेसं मणहरत्तणं पत्ता । किं न सरएण बाढं ससिलेहा लहइ लावन्नं ॥ धम्मे रया वि सुजसा विसेसओ तम्मि उज्जुया जाया। गब्भाणुभावओ खलु महिलाण मणोरहा हुति॥ लच्छीए वित्थरिओ सेट्ठी गन्भम्मि तम्मि संपत्ते । संपुन्न-चंद-मंडल उदए जलहि व्व वेलाए ॥
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