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कुमारपाल प्रतिबोधे
पडिवज्जइ समत्तं हित्थ धम्मं च बारस - विहं पि । पालेइ निरइयारं संविग्ग-मणो चिरं राया ॥ जिण भवणाई नवाइँ कारवइ समुद्धरेइ जिन्नाई । सव्वत्थ वित्थरेणं जिण-रह- जन्ताओ विरएइ ॥ पूएइ साहु-वग्गं पव्व-दिणे पोसहं कुणइ सम्मं । जिणधम्मम्मि परं पि हु जणं पयट्टावए बहुअं ॥ मन्तो विसय-सुहं विसं व सो चयइ जुवइ - संभोगं । तत्तो सूरियकंता चिंतइ कामाउरा एवं ॥ विसए सयं न सेवइ निवो ममं धरइ निञ्चमायत्तं । तं सच्चमिणं जायं न मरइ न य मंचयं चयइ ॥ तो निणामि नरिंदं केणावि विसाइणा उवाएण । पुत्तं रज्जे ठविडं भोगे भुंजामि इच्छाए || तो पोसहोववासस्स पारणे असण- पाण- मज्झम्मि | रन्नो विसं उत्तं विसय-पसत्ताइ कंताए ॥ तेण य नरिंद - देहम्मि दुस्सहा दाह वेयणा जाया । सूरियकंताइ विसं दिन्नमिणं जाणए राया ॥ मुणिऊण मरण-समयं कय- पंचाणुव्वयाइ - उच्चारो । अणुसासइ अप्पाणं-कुण मित्तिं सव्व-सत्तेसु ॥ मा कम्मि धरसु रोसं सूरियकंताइ उवरि सविसेसं । एवं काऊण इमीइ तोडियं नेह - निगडं ते ॥ जम - वस्स वेयणिजं नरयाइसु तं उईरिडं कम्मं । इह चैव निवंती एसा उवधारिणी तुज्झ ॥ जइ उण इमाइ उवरिं करेसि रोसं चिरं तवं तविडं । ता हारिहिसि सुवन्नं धम्मियं पि हु एक्क- फुक्काए ॥ संसारम्मि अनंते अनंतसो नरय- तिरिय- जम्मेसु । जाएण तए सहियाइँ जाई तिक्खाइँ दुखाई || तय विक्खाए दुक्खं थोवमिणं धीरिमं तओ धरिडं । सहसु सयं-कय- कडु - कम्म- ललियमेयं ति चिंतंतो ॥ एवं समाहि-पतो पंच-नमुक्कार - समरण पहाणो । आलोइय-पडिक्कतो पएसि राओ चयइ देहं ॥
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[ द्वितीयः
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