________________
प्रस्तावः]
गुरुसेवायां प्रदेशिकथा
१४९
होज, तो लोह-मंजूसाए तदणुरुवं छिडुं हवेज, न य तं दिढे,ता नजइ न भूयवइरित्तो जीवो । गुरुणावुत्तं-एगम्मि नयरे कोइ संखिगो संखं धमेइ, तस्स एरिसो विन्नाणाइसओ जेण गोयर-गयाणं कन्ने वि य धमेइ। अन्नया रन्नो वच्चहर-काले धमिओ संखो, कन्ने विय धमेइ त्ति आसंकाए वच-निरोहेण रुटो से राया, वज्झो सो आणत्तो, तेण भणियं-देव ! दूरे धमेमि परं कन्न-मूले विय पडिहाइ,विसिट्ठा खलु मे लट्ठी अत्थि जइ न पचओ ता विन्नासेउ देवो । तओ रन्ना खित्तो कुंभीए संखिगो ढक्किऊण जओसारिया एसा। पच्छा धमाविओ, सुओ संख-सद्दो सव्वेहिं । निरूविया कुंभी, न दिढ निग्गमण-छिडुंतहा लोहपिंडे धमिए केण वि छिड्डेण आग्गी पविट्ठो, जेण सो अग्गि-वन्नो जाओ। एवमिहावि सद्दाओ अग्गीओ य सुहुमस्स जीवस्स निग्गमे पवेसे वा न विरोहो । रन्ना भणियं-अन्नो चोरो वावायण-काले तोलिओ, पच्छा गलकमोडणेण वावाइओ, पुणो वि तहेव तोलिओ, जाव जत्तिओ पुव्वं तत्तिओ पच्छावि, अओ नजइ न तत्थ घड-चडगोवमो कोइ मओ त्ति । गुरुणा वुत्तंएगेण गोवालेण कोउगेण एगो दिइपुडो वायस्स भरिऊण तोलाविओ पच्छा विरिको, पुणो वि तोलाविओ, जाव अविरिको जत्तिओ विरिको वि तत्तिओ। जइ फासिंदिय-गब्भत्तणेण मुत्तस्स पवणस्स सब्भावासब्भावेसुं न तोल्ल-विसेसो ता अमुत्तस्स जीवस्स तोल्ल-विसेस-विरहे को विरोहो? तम्हा सव्व-पाणिणं सरीराइरित्तो सव्व-संवेयणाणुभव-पच्चक्खो चेयन्न-रूवो गमणाइ-चिट्टा-लिंगो पवणो व्व पडागा-पयलण-लिंगो अस्थि जीवो त्ति सद्दहियव्वं । रन्ना वुत्तं
भयवं ! मोह-पिसाओ मह नट्ठो तुम्ह वयण-मंतेहिं । नवरं नाहिय-वायं कमागयं कह विवजेमि ? ॥ गुरुणा वुत्तं-एयं न किंचि नरनाह ! सइ विवेगम्मि । वाही दालिदं वा कमागयं मुच्चए किं न ॥ किं च पुरिसा भमंता धणत्थिणोऽणुक्कमेण दहण । लोह तओ रुप्प-कणयाइँ पुव्व-गहियाइँ मिलंति॥ रयणाई गिहिऊण य एगे संपत्ति-भायणं जाया । अवरे तहा अकाऊण दुत्थिया सोयमणुपत्ता ॥ तह मा तुमं पि होहिसि कमागयं कुग्गहं अमेल्लंतो। इय सोउं नरनाहो नाहिय-वायं परिचयइ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org