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प्रस्ताव: ]
देवपूजायां दीपशिख - कथा |
पल्लवियं व करेहिं नयणेहिं कुसुमियं व कामलयं । थोर-त्थणेहिं फलियं व एस परिणाविओ रन्ना ॥ कय-सक्कारो य ठिओ दीवसिहो तत्थ कइ वि दियहाई । अह सेयवियं पत्तो परियरिओ चउहिं पत्तीहिं ॥ विहियं वडावणयं पिउणा ठविओ कमेण सो रज्जे । निय भुय-परक्कम - क्कत राय - चक्को गमइ कालं ॥ विसय- सुहं सेवंतस्स तस्स पुत्ता गुणुत्तमा जाया । अन्न- दिणे सो चितइ किं पुत्र्व भवे मए विहियं ॥ जस्सेरिसो विवागो सो ईहापोह - परिगओ एवं । संभर पुव्व-जाई जाणइ य जिणालए दिन्नो || जं पुत्र्व भवंमि मए दीवो तस्सेरिसं फलं पत्तं । मिलिओ पभास-सूरिस्स देव्वजोगेण दीवसिहो ॥ तस्स समीवे धम्मं सोऊण विसुज्झमाण-परिणामो । कुइ चरणाहिलासं जिद्वं पुत्तं ठवह रज्जे ॥ कय- जिणमंदिर-महिमो दिक्खं गिण्हइ समं पिययमाहिं । तिब्व तवचरण - परो दीवसिह - मुणी गओ सग्गं ॥ इति देवपूजायां दीपशिख- कथा |
जंपर कुमर - नरिंदो— मुणिंद ! तुह देसणामयरसेण । संसित्त- सव्व-तणुणो मह नट्ठा मोह - विस- मुच्छा ॥ मुणियं मए इयाणि जं देवा जिणवरा चऊव्वीसं । जे राग - दोसमय-मोह-कोह-लोहेहिं परिचत्ता ॥ नवरं पुव्वं पि मए भद्दग-भाव-प्पहाण-चित्तेण । पsिहय- पाव - पवेसं लहुं तुम्हाण उवएसं ॥ सिरिमाल-वंस-अवयंस-मंति- उद्यण-समुद्द- चंदस्स । मह-निज्जिय- सुरगुरुणो धम्म - हुम - आलवालस्स ॥ नयवंत - सिरो-मणिणो विवेय- माणिक्क- रोहणगिरिस्स । सच्चरिय - कुसुम - तरुणो बाहडदेवस्स मंतिस्स ॥ जय पायड - वायडकुल- गयणालंकार- चंद-सूराणं । गग्ग-तणयाण तह सव्वदेव-संवाण-सेट्टीण ॥
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