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प्रस्तावः]
देवपूजायां दीपशिख-कथा। सीलेण जीइ रूवं विणएण पहुत्तणं समेण महं । दाणं पणएण विहूसिऊण विहिया गुणा सगुणा ॥ नामेण गंधभदा तत्थेव पुरीइ अत्थि कम्मयरी। अन्नदिणे तीइ सुयं पुन्नं जिण-दीव-दाणस्स ॥ चंगं अंगं सुद्धा बुद्धी अविलक्खयाइं अक्खाई। सव्वुत्तमं पहत्तं जिणिंद-दीवय-पयाण-फलं॥ संजाया से सद्धा तत्तो नायजिएण तेल्लेण। दीवूसवम्मि तीए दिन्नो जिणमंदिरे दीवो ॥ वाघाय-विरहिओ सो जलिओ सद्धा-भरेण दिन्नो त्ति । एत्थंतरंमि तीए उवज्जियं परभवाउक्खं ॥ कालेण मया एसा इहेव नयरीए विजयवम्मस्त । नरवइणो देवीए जयाइ गब्भे समुप्पन्ना ॥ पुत्तत्तणेण तत्तो दिट्ठो देवीइ तीइ रयणीए। वयणमि पविसमाणो सिही जलंतो सुविणयंमी ॥ तीए वि सुहविउडाइ साहिओ सो निवस्स विहिपुव्वं । भणिया अणेण-सुंदरि ! तुह पुत्तो उत्तमो होही ॥ तीए पडिस्सुयं तं परितुट्ठा सा समुव्वहइ गझं। वह व्व निहिं तुहिणंसु-मंडलं मेहमाल व्व ॥ सरसि व्व कणय-कमलेण तेण मज्झे पवमाणेण । देवी सहावओ सुंदरा वि सुंदरयरा जाया ॥ कणय-पहा-गोरं पि हु तीए गम्भाणुभावओ वयणं । उव्वहइ पंडुरत्तं करि-दंत-च्छेय-छवि-सरिसं ॥ कन्नंतं पत्ताई नयणाई निसग्गओ वि देवीए । सरयंमि पंकयाई व दर्द वियासं पवन्नाई॥ तत्तो तइए मासे जयाइ देवीए दोहलो जाओ। माणिक्क-खंड-मंडिय-भूसण-भूसिय-सरीराऽहं ॥ गुरु-देवयाओ पुज्जेमि देमि दीणाइयाण तह दाणं । संपाडिओ य रन्ना धन्नाण न दुल्लहं किंचि ॥ समयंमि सा पसूया सूरं पुव्व व्व भासुरं पुत्तं । दीवसिहा-सरिसेणं सहजेण निडाल-रयणेणं ॥
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