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कुमारपाल प्रतिबोधे
वायाविया पडहिया माया खयरेण पढियं च ॥ पणमह चलणे इंदस्स इंदयालंमि लड- लक्खस्स । तह अहसंवरे संवरस्स सुपइट्ठिय-जसस्स || परिभावियं निवेणं अहो इमं सयलमिंदजालं ति । तो इंदजालिओ सय - सहस्स- दाणेण तोसविओ ॥ जाया रन्नो चिंता संसारो इंदजाल-सारिच्छो । इह बहु-विहारं जीवो नडो व्व रुवाई गिण्हेर || किं तत्थ कारणं ताव आगओ तत्थ दलिय भव- दुक्खो । दुक्खंतो नाम गुरू तन्नमणत्थं गओ राया ॥ पत्तीहिं चउहिं सहिओ नमिऊण गुरुं पुरो निसन्नो सो । गुरुणा भणियं - नरवर ! संसारे इंद्जाल - समे ॥ धम्मेण सुहं रूवं असुहमहम्मेण गिण्हए जीवो । रन्ना भणियं - भयवं ! पुब्व-भवे किं मए विहियं ॥ जस्सेरिसो विवागो, पुव्व-भवो साहिओ तओ गुरुणा । रन्ना वृत्तं - भयवं ! अओ परं किं लहिस्सामि ॥ गुरुणा वृत्तं - एतो अनंतर भवंमि पिययमाहिं समं । पाविस्ससि सुरलोयं सत्तसजम्मंमि पुण मोक्खं ॥ तो हरिसिओ नरिंदो गंठि- विभेएण गहिय-संमत्तो । पडिवन्न- गिहत्थ वओ गुरूवइट्ठ लहइ सव्वं ॥
इति देव पूजायां पद्मोत्तर - कथा |
दाऊण दीवयं जा जिणस्स पुरओ पराइ भत्तीए । पत्ता सुक्खं अक्खेमि गंधभद्दाइ तीह कहं ॥ अत्थि इत्थेव भरहे खेत्ते सेयविया नाम नयरी |
जत्थुन्नय- घर - कुट्टिम-गयाओ हरिणंक- हरिण- नयणाई | दहुं व सविन्भम- पिच्छरीओ रमणीओ जायाओ ॥ तत्थ विजयवम्मो नाम राया ।
आरामिओ व्व आराम-वीरुहाओ पयाओ पालेइ । जो पवरनीइ सारणि- पयट्ट-धम्मंबु-पूरेण ॥ तस्स जया नाम देवी ।
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[ द्वितीय:
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