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प्रस्तावः]
देवपूजायां पद्मोत्तर-कथा । निय-हत्थेण मए जो सो पाओ ऐस मह पइणो॥ पडिओ बीओ वि भुओ खणेण पाओ वि निवडिओ बीयो। पडिया य मुंड-रुंडा ते दुटुं खेयरी रुयइ ॥ जं मंडियं मए कुंडलेहिं तं मे पइस्स मुहमेयं । तं हिययमिणं जस्सि मज्झे वाहिं च वसियम्हि ॥ हा नाह सत्त-सत्तम ! ढ-विक्कम ! पबल-बाहु-बल-कलिय!। छलिओसि छलन्नेसण-परेण अरिणा विहि-वसेण ॥ हा! किं करेमि, कस्स च कहेमि, सरणं च कं पवजामि । तुमए विणा अणाहा अहं अहन्ना इमा जाया ॥ अहवा किं रुन्नेणं उचियमिणं न मह वीर-घरिणीए । खणमित्तं तरिउ चिय पियसंगो अप्प-वसगाए ॥ इय विलविऊण खयरीइ खेय-विहुरो पयंपिओ राया। जइ भाउगोऽसि सचं ता मह कुरु भाइ-करणिज ॥ रन्ना भणियं किं कीरउ त्ति सा भणइ देहि मह अग्गि। अत्थमियंमि मयंके वियंभए किच्चिरं जुण्हा ॥ समए इमंमि उचियं एयं चेव त्ति चिंतिउं रन्ना। सिरिखंडागरु-कठेहिं कारिया नइतडे चियगा ॥ सकारिऊण पइणो अंग-इं तेहिं सह रहारूढा । रन्नाऽणुगम्ममाणा चिया-समीवे गया खयरी ॥ नमिऊण लोगवाले जलणं दाउं सयं चिय चियाए। विजाहरी पविट्ठा उच्छंग-निविट्ठ-रमणंगा॥ अह जलणो पन्जलिओ जाला-पल्लविय-नहयलाभोगो। छारी भूया खयरी खणेण सह खेयरंगेहिं ॥ जाव न देइ नरिंदो जलंजलिं ताव आगओ खयरो। रुहिरुल्लेणं कारण भणइ हसिऊण नर-नाह !॥ कोहो व्व उवसमेणं हो सो निजिओ मए खयरो। उवरोहिओ तुम पि हु कलत्त-संरक्खण-निमित्तं ॥ संपइ अप्पसु तं मे कलत्तमेवं नरेसरो सुणिउं । सोग-विवसो विलीओ चिंतेइ अहो ! अकजं ति ॥ अद्ध-गओ संमोहं तओ अवत्थं निवस्स तं मुणिउं ।
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