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प्रस्तावः] देवपूजापूजाविषये सोम-भीमयोः कथानकम् ।
उजाणे संपत्तो तं मुणिउं हरिसिओ राया ॥ मणिचूडो करि-कंधरमारूढो धरिय-धवल-वर-छत्तो । चलिओ चलंत-सिय-चार-चामरो अमर-नाहो व्व ॥ गच्छंतेण य रन्ना दिट्टो चलिङ पि अक्खमो खामो। वयण-विणिग्गय-दसणो मसि-कसिणो लूणकर-चलणो ॥ किमि-कुटु-विण-तणू भमडंत-असंख-मच्छिया-जालो। दमगो पहंमि एगो पञ्चक्खो पाव-धुंजो व्व ।। अह चिंतियं निवेणं फुरंत-कारुन्न-पुन्न-हियएणं । पुव्व-कय-दुक्कय-फलं अणुहवइ इमो वराओ त्ति ॥ . अह उजाणे पत्तो राया मुत्तूण राय-चिंधाई। सुरकय-कमल-निसन्नं मणिरह-केवलि-मुणिं नमइ ॥ उवविसि भव-निव्वेय-कारणं तस्स देसणं लुणइ । तं पुच्छइ समए दमग-वइयरं, अह गुरू कहइ ॥ जिं जिणु पुजिउ पुव्व-भवि तिणि तुहु पालइ रज्जु । इहु पुणु जिणनिंदा-फलिण दुक्खि उ भमइ अणज्जु ॥ भणइ निवो कहमेयं कहइ गुरू पुव्व-जम्म-विहियाए। सोमो जिणपूयाए फलेण राया तुम जाओ। भीमो उण जिण-निंदा-फलेण मगो इमो समुप्पन्नो। बहु-विह-दुक्ख-कंतो भमिही संसार-कंतारं ॥ तो जाय-जाइसरणो राया जंपेइ सचमेयं ति । संवेग-परिगय-मणो करेइ संमत्त-पडिवत्तिं ॥ जिणमंदिर-जिंणपडिमा-जिणरहजत्ता-करावणुज्जुत्तो। मुणि-पय-सेवासत्तो सो परिपालइ चिरं रज्जं ॥ सुय-संकामिय-रज्जो दिक्खं गहिऊण अणसणेण मओ। मणिचूल-मुणी पत्तो सग्गं च कमेण मुक्खं च ॥ । इति देवपूजाऽपूजायां सोम-भीमयोः कथानकम् । वर-कुसुम-गंध-अक्खय-फल-जल-नेवज्ज-धूव-दीवेहिं । अट्ठ-विह-कम्म-हणणी जिण-पूआ अट्टहा होइ ॥ एएसिं लेसेण वि काउं पूयं जिणस्म भत्तीए।
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