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प्रस्तावः ]
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मद्यपाने द्वारिकादहनकथा । सो कण्हं गुरु-नेहेण ओहिनाणेण दटुमाढत्तो। तइयाए पुढवीए पेच्छइ दुक्खं अणुहवंतं ॥ तो वेउव्विय-देहं काउं कण्हस्स अंतियं पत्तो। रइउं रयणुजोयं दिव्वं गंधं व सो दिट्ठो॥ भणियं बलेण-बंधव कण्ह ! किमिहि करेमि ते कहसु । पुव्व-कय-कम्म-पभवं सहेमि दुक्खं भणइ कण्हो ॥ तत्तो बलदेवेणं कण्हो दोहि वि भुयाहिं उक्खित्तो। तावेण व नवणीयं विलाइ सो उद्धरिजंतो॥ कण्हो जंपइ-मुंचसु सुट्टयर होइ भाय ! मह दुक्खं । ता गच्छ तुमं भरहे दुण्ह वि अम्हाण रुवाई।। दंससु जहट्टियाई जणस्स, तो आगओ बलो भरहे। दिव्व-विमाणारूढो चक-गया-संख-खग्ग-धरो॥ कंचण-पिसंग-वत्थं गरुडारूढं पयासए कण्हं । नीलंबर-परिहाणं हल-मुसल-धरं च अप्पाणं । सविसेसं वेरिपुरे सुदंसए अक्खए य सव्वत्थ । कारेह अम्ह रुवाई नमह अच्चेह भत्तीए ॥ आगच्छामो सग्गाओ सग्ग-संहार-कारिणो अम्हे । काऊण विविह-कीलाओ पुण वि तत्थेव गच्छामो॥ वारवई अम्हेहिं विहिया अम्हेहि चेव संहरिया। तो राम-वयणमेयं लोएण तह त्ति पडिवन्नं ॥ एवं परंपराए इमा पसिद्धी जयंमि संजाया। रामो वि गओ सग्गं दिव्व-सुहं भुंजए तत्थ ॥ एवं नरिंद ! जाओ मजाओ जायवाण सव्व-क्खओ। ता रन्ना नियरजे मजपवित्ती वि पडिसिद्धा॥
इति सुराव्यसने यादवकथा ॥
इण्हि नरिंद ! निसुणसु कहिज-माणं मए समासेणं । वसणाण सिरो-रयणं व सत्तमं चोरियावसणं ॥ पर-दव्व-हरण-पाव-दुमस्स धण-हरण-मारणाईणि। वसणाई कुसुम-नियरो नारय-दुक्खाइं फलरिद्धी ॥
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