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कुमारपालप्रतिबोधे
[प्रथमः
तह कहवि नरं जह मुणइ एस सव्वं पि सच्चमिणं ॥ चवल-सहावाओ निरप्पणाओ अचंत-लोह-बद्धाओ। जाणंति वानरीओ व सुहेण जो भक्खियव्वो त्ति ॥ वंचह मा वंचिजह गिह हिययाइं देहि मा हिययं । इय अका-उवासं संतं व सरंति सुविणे वि॥ अत्थस्स कए कुट्टिणमुवगृहंतीण जाण वेसाण ।
अप्पावि वेरिओ खलु को अन्नो वल्लहो ताण ॥ तहा
वेस विसिट्ठह वारियइ जइ वि मणोहर-गत्त । गंगाजल-पक्वालिय वि सुणिहि किं होइ पवित्त ॥ नयणिहि रोयइ मणि हसइ जणु जाणइ सउ तत्तु । वेस विसिट्ठह तं करइ जं कहह करवत्तु ॥ इय कित्तियं व सकइ कहिउं वेसा-सरूवमइगहणं ।
एत्थ य ठिओ सयं चिय तुमं पि पेच्छिहिसि पञ्चक्खं ॥ मह चत्तारि दारियाओ-१ गोरी, २ ललिया, ३ रंभा, ४ मयणानामाओ इमस्स धवलहरस्स मज्झे भिन्न-भिन्न-भवणेसु चिटुंति, तासिं चरियं कुडुंतरिओ तुमं पेच्छसु । तहेव काउमाढत्तो असोगो । तत्थ गोरीए पुव्वपरिचियं चिराउ आगच्छंतं सिवं नाम पुरिसं दट्टण पुव्व-पविट्ठो पुरिसो निस्सारिओ अन्नदारेण, अप्पणा पुण पडिवन्नं तकालमेव पइव्वया-वयं । गुत्था मंगलवेणी, विमुक्काई कुसुम-तंबोलाहरणाई । तओ कयं सिवेण सह दसणं । बाह-जल-भरिय-नयणाए भणियं अणाए-सागयं पाणनाहस्स । सिवेण वुत्तं-कुसलं ते ? । गोरीए भणियं-केरिसं कुसलं तुह विरहे, संपयं पुण कुसलं जं तुमं जीवंतीए मए देव-उवाइय-सएहिं दिहोसि ।
पिय ! हर्ष थकिय सयल दिणु तुह विरहग्गि किलंत । थोडइ जलि जिम मच्छलिय तल्लोविल्लि करंत ॥ मई जाणियउं पिय-विरहियह कविधर होइ वियालि ।
नवरि मयंकु वि तह तवइ जह दिणयह खयकालि ॥ इच्चाइ चाडु-वयणावज्जिय-चित्तेण सिवेण पिए मा झूरसु, कित्तियमिणं तुह सिणेहस्स त्ति भणिऊण दिन्नाई कुसुम-तंबोल-वत्था-हरणाई । असोएण सव्वमिणं दट्टण चिंतियं
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