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प्रस्ताव: ]
परदारगमनविषये प्रद्योतकथा |
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अभएण पुर्व पज्जोय - सरिसा पुरिसो पज्जोओ त्ति नामं काऊण उम्मत्तो कओ । भाइ अभओ - एस मे भाया सारवेमि, एयं किं करोमि, एरिसो भाइ-नेहो ति सो रुट्ठो रुट्ठो नस्सइ । तओ बंधिऊण, उट्ठेह रे ! अमुगा अमुगा, अहं पज्जोओ हरामि त्ति रडतो आणिजइ निज्जइ य विज-पासं । इमं च नायं नयर-जणेण । सत्तम - दिणे पज्जोएण पेसिया दूई ताण पासं । ताहिं वुत्तंएउ एक्लउ ति ।
दुई-वयणेण एसोएगागी आगओ गवक्खेण । नहि जुत्तमत्तं वा मुणइ मणुस्सो रमणि-रत्तो ॥ पुव्व-निउत्त-नरेहिं गिहं पविट्टो परंगणा - गिडो । बद्धो सो वारिगओ गओ व्व करिणी- कयाकंखो ॥ अह खट्टाए सह बंधिऊण दिवसंमि नयर - मज्झेण । निज्जइ पज्जोय - निवो अभयकुमारस्स पुरिसेहिं ॥ रे ! रे ! धावह गिण्हह मोयावह झत्ति मं इमेहिंतो । एसोsहं पज्जोओ निज्जामि फुडं इय रडंतो ॥ वीहीकरण-जणेणं पुच्छिज्जइ को इमो ?, भणति नरा । वाणिय-भाया निज्जइ विजघरं एस निचं पि ॥ वाहिं आसरएहिं उक्खत्तो पाविओ य रायगिहं । सो सेणियस्स कहिओ कड्डिय खग्गो इमो पत्तो ॥ तं हरिं कुविय - मणो भणिओ अभएण मा कुरु अजुत्तं । जं किरइ सक्कारो सत्तुस्स वि गेह - पत्तस्स ॥ वसणंमि समावडियं कह वि तुलग्गेण वेरियं लडुं । उवयारमारियं तह करेसु जइ सो जियइ दुक्खं ॥ तो सेणिएण रन्ना मुक्को सक्कारिऊण पज्जोओ । इय परदार- पत्तो संपत्तो बंधणं एसो ॥ इति पारदार्ये प्रद्योतकथा ||
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रन्ना वृत्तं - भयवं ! मूलाओ चिय मए परित्थीओ। दूरं भयंकरीओ भुयंगमीओ व्व चत्ताओ ॥ पर - रमणि - पसत्त-मणो पाएण जणो न को वि मह रज्जे । गुरुणा भणियं - धन्नो सि जो परित्थी - नियत्तो सि ॥ कमलाण सरं रयणाण रोहणं तारयाण जहा गयणं ।
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