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प्रस्तावः ]
परदारगमनविषये प्रद्योतकथा । पमाणं ' ति भणंतेहिं तेहिं तहेव कयं । गुरुणा भणियं-सव्वाणत्थ-निबंधणं परिहरनु पर-रमणि-सेवणं । जओ
कुल कलंकिउ मलिउ माहप्पु, __ मलिणीकय सयण-मुह , दिन्नु हत्थु नियगुण-कडप्पह,
जगु ज्झंपिओ अवजसिण,
वसण-विहिय सन्निहिय अप्पह । दूरह वारिउ भहु तिणि ढक्किउ सुगइ-दुवारु । उभय भवुन्भड-दुक्ख-करु कामिउ जिण परदारु ॥ सरहस-नमिर-नरेसर-चूडा-चुंबिज्जमाण-चलणो वि। . पर-महिलमहिलसंतो पज्जोओ बंधणं पत्तो॥ रन्ना भणियं-भयवं! कहमेयं? तो पयंपियं गुरुणा। मगह-विसयावयंसं रायगिहं अत्थि वर-नयरं॥ पइगेहं विलसंते टुं गोरी-महेसरे जत्थ ।। कुड्डेण आगओ हिमगिरि व्व धवलो सहइ सालो॥ तत्थ पणमंत-पत्थिव-मत्थय माणिक-चक्क-वालेण । मसिणीकय-कम-नह-चंद-सेणिओ सेणिओ राया ॥ चउविह-बुद्धि-समिडो चउदिसि-साहण-पउत्त-चउ-नीई। चउ-भेय-संघ-भत्तो पुत्तो तस्साभयकुमारो ॥ अह उजेणीपुरीए चउदस-नर-नाह-विहिय-पय-सेवो। रायगिह-रोहणत्थं पज्जोओ पत्थिवो चलिओ॥ तं जाणिऊण इंतं भणइ निवो-अभय ! किमिह कायव्वं ? । अभओ भणइ-भयं मा करेसु, नासेमि से दप्पं ॥ तो अरि-सेना-वास-ठाणेसुं तंब-कलस-मज्झ-गया। दीणारा निक्वणिआ अभएण अणागयं चेव ॥ अह पत्तो पजोओ रुद्धं सिन्नेण तस्स रायगिहं । ससि-बिंबं व परिहिणा, कइवि दिणे जुज्झिया दो वि॥ . तो भणिओ पन्जोओ गूढनरे पेसिऊण अभएण। सिवदेवि-चिल्लणाणं अहं विसेसं न मन्नेमि ॥
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