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प्रस्तावः]]
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तविषये नलचरितम् । अणुमरिउ वीरमई देवी तत्थेव मणहरा जाया। अत्थंगयंमि चंदे कियचिरं चिट्ठए जुण्हा ॥ तत्तो मम्मण-जीवो चविउं इह जंबुदीव-भरहंमि । बहली-विसयालंकरण-कंकणे पोयणपुरम्मि ॥ आभीर-धम्मिलासस्स रेणुया नामियाइ घरिणीए । निम्मल-गुण-परिपुन्नो उप्पन्नो 'धन्नउत्ति सुओ॥ वीरमई जीवो पुण संजाया 'धूसरित्ति से घरिणी। धन्नो निय-महिसीओ बाहिं गंतूण चारेइ ॥ अह पाउसे पयट्टे घणे सुबुद्धिं घणं कुर्णतेसु । महिसीण चारणत्थं सिरोवरिं छत्तयं धरिलं ॥ धन्नो गओ अरन्ने तेण तहिं तिव्व-तव-किसो दिहो। काउस्सग्गेण ठिओ मुणी गिरिंदो व्व निकंपो॥ भत्तीएँ छत्तयं से सिरंमि धरि निवारियं इमिणा । समणस्स वुट्टि-कटुं, अह वुट्टीए नियत्ताए॥ नमिऊण मुणी भणिओ धन्नेण-तुमं इहागओ कत्तो ?। समणेण जंपियं-भद्द ! पंडदेसाउ पन्तोहं ॥ लंकापुरीइ चलिओ तत्थागय-निय-गुरूण नमणत्थं । मेहेण सत्त रत्तं वरिसंतेणं नवरि रुद्धो॥ धन्नण जंपियं-पंक-दुग्गमा णाह ! संपयं पुहवी । तो चलसु नयर-मज्झे मज्झ इमं महिसमारुहिउँ ॥ मुणिणा भणियं-साहूण वाहणारोहणं अजुत्तं ति। तो धन्नएण सहिओ साहू सणियं गओ नयरं ॥ धन्नेण मुणी भणिओ-खणमेकं एत्थ चिट्ठ ताव तुमं । घित्तूण जाव दुद्धं अहमागच्छामि गेहाओ॥ गंतूण गिहं धन्नो दुद्धं चित्तूण आगओ झत्ति । भत्तीए कारिओ तेण महरिसी दुद्ध-पारणयं ॥ धन्नेण समजेणं मुणि-पासे सावगत्तणं गहियं । तत्थेव पोयणपुरे वरिसा-कालं ठिओ साहू ॥ पच्छा अन्नत्थ गओ धन्नो सह धूसरीए चिरकालं । पालिय-सावग-धम्मो पडिवन्नो संजमं पच्छा ॥
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