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प्रस्तावः]
द्यूतविषये नलचरितम् । मय-क्खंभ-मंडिओ रम्मयाए विमाण-माण-निम्महण-पंडिओ पवणुडुय-धयपारद्ध-तंडवो सयंवर-मंडवो । तत्थ रयाविया विहिय-दरिसण(?)........." । ठवियाई तत्थ नाणा-रयण-किरण-कडप्प-कप्पिय-सुरिंद-सरासणाई सुवत्त-सिंहासणाई। निविट्ठा तेसुपरोप्परं रिद्धि-पाडिसिद्धीए पयडियप्पाणो रायाणो । पयहा पयासिउं बहु-प्पयारे काम-वियारे। एत्यंतरे जणयाएसेण समागया पसरिय-पहाजाल-भाल-तिलयालंकिया पुव्व-दिस व्व रवि-बिंब-बन्धुरा पसन्न-वयणा पुन्निमनिस व्व संपुन्न-ससि-सुंदरा घण-त्थण-मंडला मयण-केलि-सरसि व्व मिलिएक-चकवाय-मिहुणा आरत्त-कर-चलण-कमला कंकेल्लि-तरु-लय व्व नवपल्लव-पेसला थूल-मुत्ताहलाहरण-हारिणी मल्लिय व्व उम्मिलंत-कुसुम-समूहसोहिआ धवल-दुकूल-निवसणा गयण-लच्छि व्व सच्छ-सरयब्भ-संगया वलक्ख-कडक्ख-च्छडा-विच्छुरिय-दिस-मुहा समुद्द-वेल व्व समुच्छलंत-मच्छ-रिंछोलि-संकुला सयंवर-मंडवं मंडयंती दमयंती । तं दद्दूण विम्हिय-मुहेहिं महिनाहेहिं स चेव चक्खु-विक्खेवस्स लक्खीकया।
तो रायाएसेणं भद्दा अंतेउरस्स पडिहारी। कुमरीऍ पुरो निव-कुमर-विकमे कहिउमाढत्ता ॥ कासि-नयरी-नरेसो एसो दव-भुय-बलो [बलो] नाम ।
वरसु इमं जइ गंगं तुंग-तरंगं महसि दटुं॥ दमयंतीए भणिअं-भद्दे ! पर-वंचण-वसणिणो कासि-वासिणो सुव्वंति ता न मे इमंमि रमइ मणं ति अग्गओ गच्छ । तहेव काऊण भणियं तीए
कुंकण-वई नरिंदो एसो सिंहो त्ति वेरि-करि-सिंहो।
वरिऊण इमं कयली-वणेसु कीलसु सुहं गिम्हे ॥ दमयंतीए भणियं-भद्दे ! अकारण-कोवणा कुंकणा, ता न पारेमि इमं पए पए अणुकूलिउं तो अन्नं कहेसु । अग्गओ गंतूण भणियं तीए
कम्हीर-भूमि-नाहो इमो महिंदो महिंद-सम-रूवो। ___ कुंकुम-केयारेसुं कीलिउ-कामा इमं वरसु॥
कुमरीए वुत्तं-भद्दे ! तुसार-संभार-भीरुयं मे सरीरयं किं न तुमं जाणसि ? | तो इओ गच्छामो त्ति भणंती गंतूण अग्गओ भणिउं पवत्ता पडिहारी।
एस निवो जयकोसो कोसंबीए पहू पउर-कोसो। मयरद्धय-सम-रूवो किं तुह हरिणच्छि ! हरइ मणं ? ॥
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