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प्रस्ताव:1
अमरसिंहकथा । " पुरो भमंतीइ वि अंगणाए
सकजलं दिहिजुयं नव त्ति ।” पढिउं इमा समस्सा कुमरेण समप्पिया तेसिं ॥
"चक्खं च हुई थण-मंडलम्मि ___ अणुरक्खणं तेण मए न नायं । पुरो भमंतीइ वि अंगणाए
सकज्जलं दिहिजुयं नव त्ति ॥" एवं निय-निय-चित्ताणुसारओ जुवइ-वन्नण-परेहिं । पर-तिथिएहिं बहुहा कयं समस्साइ पुव्वद्धं ॥ भवियव्वा-वसेणं सोममुणी छगल-पुव्व-भव-कहगो। तत्स्थागओ अणेण वि पुव्वद्धं पूरियं एवं ॥
"मग्गे तसा-थावरजंतुरक्खा
वखित्तचित्तेण मए न नायं । पुरो भमंतीह वि अंगणाए
सकजलं दिट्टि-जुयं न व त्ति ॥" कुमरो भणइ इमेसुं कस्स मणे फुरइ जीव-दया। राया जंपइ जिण-मुणि-मणं वि मुत्तुं न अन्नेसिं॥ अन्नेसि पि इमस्स व मणमि जइवि फुरिज जीव-दया । वयणं पि तारिसं होज न उण सिंगार-रस-पवरं ॥ तो मुणि-पय-पक्खालण-जलेण अन्भुक्खियं नयरमखिलं । तं असिवं उवसंतं राया परिओसमावन्नो ॥ जंपइ कुमरं तुममुत्तमो त्ति सामन्नओ जइवि नायं । तहवि तुह मुणिउमिच्छइ ठाण-कुल-प्पमुहमेस जणो ॥ पुर-कुल-पिउ-पमुहं कुमर-संतियं कहइ सव्वमवि विमलो । निय-धूयं कणगवई रन्ना परिणाविओ कुमरो॥ कुमरस्स कुणइ करि-तुरय-कणय-वत्थाइ-वियरणं राया । इय तत्थ सुहं चिट्ठइ विसयासेवण-परो कुमरो॥ अह पुरिसा अमरपुराउ आगया तत्थ तेहि विन्नत्तो। कुमरो तुमंमि नयराओ निग्गए सो समरसीहो । पारद्धि-परो रजं रक्खइ न परेहि विद्दिविशं तं ।
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