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कुमारपालप्रतिबोधे
[प्रथमः
वुचंति चोर-सद्देण केवलं न उण नायरया ॥ तत्यत्थि भाणुनामो निवई नय-लच्छि-केलि-पंकरुहं । जस्स करे करवालो कालो संहरइ रिउ-चकं ॥ तंमि समए महंतं असिवं संजायमथि तत्थ पुरे । तस्सोवसमे हेउं पुच्छइ बंभण-गणं राया ॥ सो कहइ कुणसु पुर-देवयाइँ पूयं पुरो पसु-वहेण । राय-पुरिसा पयहा तहेव तो पसु-वह काउं॥ तं पारद्धं दटुं कुमरो करुणाइ हिंसगे भणइ। मा हणह इमे, ते बिंति को तुमं वारगो अम्ह ॥ निव-वयणेण पसु-वहं कुणिमो निव-वयणओ य विरमामो । इय भणिऊण पयहा काउं तं दृढयरं पुरिसा ॥ तो कुमरेणं भणिओ छगलसुरो रक्ख पसु-वहं एयं । उग्गीरि उग्ग-खग्गे ताण भुए बंभए तियसो॥ अच्छरियमिणं दहें निवस्स पुरओ निवेयए लोओ। तत्तो विम्हिय-चित्तो भाणुनिवो तत्थ संपत्तो॥ दिट्ठो कुमरो अमरो व्व तेण रमणीय-रूव-संपन्नो। सो वि नमिओ नरिंदं जंपइ किमिमे हणिजंते ॥ नहि पसु-वहेण असिवं नियत्तए अवि य वड्डए बाद । लोए पलीवणं पिव पलाल-पूल-प्पसंगेण ॥ वजरइ भाणुराओ नियत्तिही भद्द ! कहमिणं असिवं । कुमरो जंपइ नरनाह ! मज्झ मंत-प्पभावेण ॥ पत्ते अवयरिऊणं एस चिय देवया फुडं कहिही । असिवो-वसमो-वायं किमित्थ बहुणा पलत्तेण ॥ आणाविया कुमारी रन्ना कुमरेण मंडले ठविया । सिरिखंड-कुसुम-पमुहेहिं पूहआ जंपए एवं ॥ "वसइ कमलि कलहंसी जिम्व जीव-दया जसु चित्ति । तसु पय-पक्खालण-जलिण होसइ असिव-निवित्ती॥" अह भाणुनिवो वुल्लइ भद्द ! मणे वसइ जस्स जीव-दया । सो कहमिह नायव्वो, अस्थि उवाओ भणइ कुमरो ॥ दंसणिणो सब्वे वि हु मेलमु; तो मेलिया इमे रन्ना ।
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