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लोकविभागः
[ १.२६०
स्वयंप्रभविमानेशः सोमः पूर्वदिशाधिपः । स्थानकेषु विमानानां षट्कानां षट्सु भोजकः ।। २६० । ६६६६६६ । उक्तं च [ ति प ८, २९७]-- छल्लक्खा छावट्ठी सहस्सया छस्सयाणि छासट्ठी' । Heera fafiदाणं विमाणसंखा य पत्तेक्कं ॥ ४ ॥
वस्त्रैराभरणैर्गन्धैः पुष्यैर्वाहनविस्त[ष्ट ] रैः । रक्तवर्णैर्युतः सर्वैः सार्धपत्य द्विक स्थितिः ।। २६१ वरारिष्टविमानेशो यमो दक्षिणदिक्पतिः । पूर्ववत्कृष्ण नेपथ्यः सार्धपत्यद्विक स्थितिः ॥ २६२ जलप्रभविमानेशो वरुणश्चापरापतिः । सोमवत्पीत नेपथ्यो न्यूनपत्यत्रिक स्थितिः ।। २६३ वल्गु प्रभविमानेशः कुबेरश्चोत्तरापतिः । सोमवच्छुक्लनेपथ्यो न्यूनपल्यत्रिकस्थितिः ।। २६४ नन्दने बलभद्राख्ये मेरोरुत्तरपूर्वतः । कूटे तन्नामको देवो मार्नः काञ्चनकैः समे ।। २६५ नन्दनं मन्दरं चैव निषधं हिमवत्पुनः । रजतं रुचकं चापि ततः सागर चित्रकम् ।। २६६ वामष्टमं कूटं द्वे द्वे स्यातां चतुर्दिशम् । नन्दने दिक्कुमारीणां सहस्रार्धोद्गतानि च ।। २६७
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स्वयंप्रम विमानका अधिपति और पूर्वदिशाका स्वामी सोम नामक लोकपाल छह स्थानों में स्थित छह अंकों प्रमाण अर्थात् छह लाख छयासठ हजार छह सौ छ्यासठ (६६६६६६) विमानोंका उपभोक्ता है ।। २६० ।। कहा भी है
सौधर्म इन्द्रके लोकपालोंमेंसे प्रत्येक लोकपालके विमानोंकी संख्या छह लाख छयासठ हजार छह सौ छ्यासठ है ॥ ४ ॥
यह सोम नामक लोकपाल लाल वर्णवाले सब वस्त्र, आभरण, गन्ध, पुष्प, वाहन और विस्त[ष्ट ] ( आसनों) से संयुक्त होता है । आयु उसकी अढ़ाई पल्पोपम प्रमाण होती है ।। २६१ ।। उत्तम अरिष्ट विमानका स्वामी यम नामक लोकपाल दक्षिण दिशाका अधिपति होता है । पूर्वके समान उसकी वेषभूषा कृष्णवर्ग और आयु अढाई पल्पोपम प्रमाण होती है || २६२ ॥ जलप्रम विमानका अधीश्वर वरुण नामक लोकपाल पश्चिम दिशाका स्वामी होता है । सोम लोकपाल के समान उसकी वेषभूषा पीतवर्ण और आयु कुछ कम तीन पल्योगम प्रमाण होती है ।। २६३ ।। वल्गुप्रभ विमानका अधिपति कुबेर नामक लोकपाल उत्तर दिशाका स्वामी होता है । सोम लोकपालके समान उसकी वेषभूषा शुक्लवर्ण और आयु कुछ कम तीन पल्पोपम प्रमाण होती है ॥ २६४ ॥
नन्दन वनमें मेरुके उत्तर-पूर्व (ईशान) में वलभद्र नामक कूट स्थित । इसका प्रमाण कांचन पर्वतोंके समान है । उसके ऊपर कूट जैसे नामवाला ( बलभद्र ) देव रहता है ।। २६५ ॥ नन्दन, मंदर, निषध, हिमवान्, रजत, रुचक, सागरचित्र और आठवां वज्र नामक कूट; इस प्रकार ये दो दो कूट नन्दन बनके भीतर चारों दिशाओंमें दिक्कुमारियोंके स्थित हैं । इनकी ऊंचाई एक हजारके आधे अर्थात् पांच सौ (५०० ) योजन प्रमाण है । विस्तार उनका
१ आ ब छावट्ठी ।
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