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-१.२००] प्रथमो विभागः
[२३ कच्छा सुकच्छा महांकच्छा चतुर्थी कच्छकावती। आवर्ता लाङ्गलावर्ता पुष्कला पुष्कलावती ।। १९२ अपराद्या इमे ज्ञेया विजयाश्चक्रवतिनाम् । नीलसोते च संप्राप्ताः प्रादक्षिण्येन भाषिताः' ।।१९३ त्साव सुवत्सा महावत्सा चतुर्थी वत्सकावती । रम्या सुरम्या रमणीयाष्टमी मङ्गलावतो ।। १९४ पद्मा सुपग्रा महापद्मा चतुर्थी पद्मकावती । शङ्खा च नलिना चैव कुमुदासरिते ऽपि च ।। १९५ वप्रा सुवप्रा महावप्रा चतुर्थी वप्रकावती । गन्धा खलु सुगन्धा च गरिधला गन्धमालिनी ।। १९६ सीता निषधयोर्मध्ये वत्साद्या परिकीर्तिताः । पद्माद्या निषधासन्ना वप्राद्या नीलमाश्रिताः ।। १९७ द्वे सहस्र शते द्वे च देशोनाश्च त्रयोदश । पूर्वापरेण विष्कम्भो दयं वक्षारसंमितम् ।। १९८
। २२१२।। द्वात्रिंशद्विजयार्धाश्च तेषां मध्येषु तत्समाः । भारतेन समा माननवकूट विभूषिताः ।। १९९ एकशः पञ्चपञ्चाशच्छेण्योः स्युनंगराणि च । नित्यं विद्याधराश्चेषु परयोपयोस्तथा ।। २००
नदीके नामसे प्रसिद्ध हैं । इनका वर्णन रोहित नदीके समान है । इनके संगमस्थान में स्थित तोरणोंके ऊपर जो प्रासाद स्थित हैं उनमें दिक्कन्यायें निवास करती हैं ॥१९१।। इनका विस्तार मुखमें १२१ और प्रवेशमें १२५ योजन है ।
कच्छा, सुकच्छा, महाकच्छा, कच्छकावती, आवत।, लांगलावर्ता, पुष्कला और पुष्कलावती; ये पश्चिमको आदि लेकर प्रदक्षिणक्रमसे स्थित चक्रवतियों के विजय नील पर्वत और सीता नदीको प्राप्त हैं, ऐसा निर्दिष्ट किया गया है ।। १९२-१९३ ॥ वत्सा, सुवत्सा, महावत्सा, चतुर्थ वत्मकावती, रम्या, मुरम्या, आठवीं रमणीया, मंगलावती, पद्मा, सुपना, महापद्मा, पद्मकावती, शंखा, नलिना, कुमुदा, सरिता, वप्रा, सुवप्रा, महावप्रा, वप्रकावती, गन्धा, सुगन्धा, गन्धिला और गन्धमालिनी ; इनमें वत्सा आदि विजय सीता नदी और निषध पर्वतके मध्य में कहे गये हैं । पद्मा आदिक देश निषध पर्वत के समीप में तथा वप्रा आदिक देश नील पर्वतके आश्रित हैं ।। १९४-१९७ ।। इनके पूर्वापर विस्तारका प्रमाण कुछ कम दो हजार दो सौ तेरह (२२१२३) योजन है । लंबाई उनको वक्षार पर्वतोंके बराबर (१६५९२११ यो.) है ।। १९८ ॥
उन क्षेत्रोंके मध्य भागमें क्षेत्र विस्तारके समान लंबे (२२१२६२.) बत्तीस विजयाध पर्वत स्थित हैं । नौ कूटोंसे विभूषित ये विजयाध पर्वत प्रमाणमें भरतक्षेवस्थ विजयार्धके समान हैं ।। १९९ ॥ इनमेंसे प्रत्येक के ऊपर दो श्रेणियोंमें पचवन पचवन नगरियां हैं जहां नित्य ही विद्याधरोंका निवास है । इसी प्रकार आगेके दो द्वीपों (धातकीखण्ड और पुष्करार्ध) में भी समझना चाहिये ।। २०० ।।
१५ भाषितः ।
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