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२२] लोकविभागः
[१.१८२षोडशव सहस्राणि यष्टकोनशतानि षट् । द्वे कले चायता एते चतुःकूटास्तथैकशः ॥ १८२
। १९६६५९२ । । पर्वताश्रितकूटेषु दिशाकन्या वसन्ति हि । नद्याश्रितेषु कूटेषु अर्हदायतनानि च ॥ १८३ मध्यमेष्वथ कूटेषु व्यन्तराकोडनालयाः । अनुपर्वतमायामाः कूटानां गदितो बुधैः ।। १८४ द्वाविंशतिसहस्राणि भद्रशालवनं स्मृतम् । मेरोः पूर्वापरं सार्धशते' द्वे दक्षिणोत्तरम् ।। १८५ गव्यूतिमवगाढाश्च गव्यूतिद्वयविस्तृताः । वेदिका योजनोत्सेधा वनात्पूर्वापर स्थिताः ।।१८६ नदी ग्राहवती नीलात्प्रच्युता हृदवत्यपि । सीतां पङ्कवती चेति वक्षारान्तरसंस्थिताः ॥१८७ पूर्वात्तप्तजला नाम्ना तस्या मत्तजला परा । नद्युन्मत्तजला चेति सीतां निषधपर्वतात् ॥ १८८ क्षारोदा' निषधादेव सीतोदा च विनिर्गता। स्रोतोन्तर्वाहिनी चेति सीतोदां प्रविशन्ति ताः ॥१८९ अपरेषु विदेहेषु वपराद् गन्धमालिनी । फेनमालिनिका नीलादूमिमालिन्यपि स्नुताः ॥ १९० एता विभङ्गनद्याख्या रोहित्सदशवर्णनाः । दिशाकन्या वसन्त्यासां संगमे तोरणालये ॥ १९१
विष्कम्भो मुखे १२ । प्रवेशे १२५ ।
गया है ॥ १८१॥ ये पर्वत सोलह हजार व आठ कम छह सौ अर्थात् सोलह हजार पांच सौ बानबा योजन और दो कला (१६५९२२.) प्रमाण लंबे हैं । इनमेंसे प्रत्येकके ऊपर चार कूट अवस्थित हैं ॥ १८२ ॥ इनमें से जो कूट पर्वतके आश्रित हैं उनके ऊपर दिक्कन्यायें निवास करती हैं, तथा जो कूट नदीके आश्रित हैं उनके ऊपर जिनभवन स्थित हैं ।। १८३ ॥ मध्यके कूटोंपर व्यन्तर देवोंके क्रीडागृह हैं। इनका आयाम गणधरादिकोंके द्वारा पर्वतके आयामके अनुसार कहा गया है ।। १८४ ॥
.. भद्रशाल वनका विस्तार मेरुके पूर्व-पश्चिममें बाईस हजार (२२०००) योजन और उसके दक्षिण-उत्तरमें अढाई सौ योजन प्रमाण है।। १८५ ॥ भद्रशाल वनके पूर्व और पश्चिममें जो वेदिकायें स्थित हैं उनका अवगाह एक कोस, विस्तार दो कोस, तथा ऊंचाई एक योजन प्रमाण हैं ॥ १८६ ॥
ग्राहवती, ह्रदवती और पंकवती ये विभंगा नदियां नील पर्वतसे निकलकर सीता महानदीको प्राप्त हुई हैं। इनका अवस्थान वक्षारोंके मध्य में है ॥१८७।।पूर्वकी ओरसे तप्तजला नामक दूसरी मत्तजला और तीसरी उन्मत्तजला ये तीन विभंगा नदियां निषध पर्वतसे निकलकर सीत महानदीको प्राप्त हुई हैं ॥ १८८ ॥ क्षारोदा, सीतोदा और स्रोतोवाहिनी ये तीन विभंगा नदियां निषध पर्वतसे ही निकलकर सीतोदा महानदीमें प्रवेश करती हैं ॥१८९।। गन्धमालिनी,फेनमालिनी,
और अमिमालिनी नामक ये तीन विभंगा नदियां पश्चिमकी ओरसे अपर विदेहोंमें स्थित होती हुई नील पर्वतसे निकलकर सीतोदा महानदीको प्राप्त हुई हैं ॥१९०॥ये उपर्युक्त बारह नदियां विभंगा
१५ साधं शते । २ प जलानाम्ना । ३ पक्षीरोदा ।
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