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प्रथमो विभाग:
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सीतोदकूटमपरं कूटं रिसमा ख्यकम् । विद्युत्प्रभेषु सर्वेषु त्वेवमेतानि' नामभिः || १७४ उभयान्तस्थकटेषु तेषां देव्यो ह्यनन्तराः | दिक्कुमार्थश्च मध्येषु वसन्त्या क्रीडवेश्मसु ।। १७५ भोकरा भोगवती सुभोगा भोगमालिनी । वत्समित्रा सुमित्रा च वारिषेणा बलेति ताः ।। १७६ उक्तं च द्वयम् [ ति. प. ४,२१३६-३७.] मेरुरिपुव्वक्खिण पच्छिमये उत्तरम्मि पत्तेक्कं । सोदासीदोदाये पंच दहा केइ इच्छति ॥४ ताणं उवदेसेण य एक्केक्कदहस्स दोसु तीरेसु । पण पण कंसेला पत्तेक्क होंति नियमेण ॥५ चित्रकूट: पद्मकटो नलिनश्चैकशैलकः । शैलाः पूर्वविदेहेषु सीतानीलान्तरायता ।। १७७ त्रिकूटो निषधं प्राप्तस्तथा वैश्रवणाञ्जनौ । आत्माञ्जनश्च पूर्वाद्याः सीतां प्राप्य प्रतिष्ठिताः २ ॥१७८ श्रद्धावान् विजटावाँश्च आशीविषसुखावहौ । अपरेषु विदेहेषु सोतोदानिषधाश्रिताः ।। १७९ नीलसतोदयोर्मध्ये चन्द्रमालो गिरि[ : ]स्थितः । सूर्यमालो नागमालो देवमालश्च नामभिः ॥ १८० नदीतटेषु तद्विद्धाः शतानि खलु पञ्च ते । गजदन्तसमा शेषवर्णनाः परिकीर्तिताः ।। १८१
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इस प्रकार ये नौ कूट विद्युत्प्रभ गजदन्तके ऊपर अवस्थित हैं ।। १७३ - १७४ ।। उनके दोनों ओरके अन्तिम कूटोंपर अनन्तर कहीं जानेवाली व्यन्तर देवियां तथा मध्य में स्थित कूटोंपर स्थित ग्रहों में दिक्कुमारियां निवास करती हैं । इन उपर्युक्त देवियोंके नाम ये हैं- भोगंकरा, भोगवती, सुभोगा, भोगमालिनी, वत्समित्रा, सुमित्रा, वारिषेणा और बला ।। १७५-१७६।। यहां दो गाथायें कही गई हैं-
मेरु पर्वत के पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर इनमेंसे प्रत्येक दिशामें सीता और सीतोदा नदियोंके आश्रित पांच द्रह हैं, ऐसा कितने ही आचार्य मानते हैं। उनके उपदेशके अनुसार प्रत्येक के दोनों किनारोंपर नियमसे पांच पांच कांचन पर्वत स्थित हैं ||४-५ ।।
चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट और एकशैल वे गजदन्त पर्वत पूर्वविदेहों में सीता महानदी और नील पर्वतके बीच में लंबायमान हैं । निषध पर्वतको प्राप्त त्रिकूट, वैश्रवण, अंजन और आत्मांजन; ये गजदन्त पर्वत पूर्वादिक्रमसे सीता महानदीको प्राप्त होकर प्रतिष्ठित हैं । अभिप्राय यह है कि उपर्युक्त आठ गतदन्त पर्वत प्रदक्षिणक्रमसे पूर्व विदेहक्षेत्रोंमें अवस्थित हैं ।। १७७-१७८।। श्रद्धावान्, विजटावान्, आशीविष और सुखावह; ये गजदन्त पर्वत सीतोदा महानदी और निषध पर्वतके आश्रित होकर अपर विदेहक्षेत्रों में अवस्थित हैं । नील पर्वत और सीतोदाके मध्य में चन्द्रमाल पर्वत स्थित है । इसी प्रकार से सूर्यमाल, नागमाल और देवमाल नामक गजदन्त पर्वत भी वहां अवस्थित हैं ।। १७९-१८० ।। इनकी ऊंचाई नदीतटके ऊपर पांच सौ योजन प्रमाण है । उनका समस्त वर्णन गन्धमादनादि गजदन्त पर्वतोंके समान बतलाया
१ ब त्ववमेतानि । २ प उत्तरब्भि । ३ व सीतां प्रतिष्ठिताः ।
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