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-१.१५०] प्रथमो विभागः
[ १७ दक्षिणापरतो मेरोः सोतोदापश्चिमे तटे । आसन्नं निषधस्यैव स्थलं रूयमयं शुभम् ॥१४२ तत्र शाल्मलिराख्याता जम्बूसदृशवर्णना । तस्या दक्षिणशाखायां सिद्धायतनमुत्तमम् ।।१४३ शेषासु दिक्षु वेश्मानि त्रीणि तत्र सुरावपि । वेणुश्च वेणुधारी च देवकुर्वधिवासिनौ ॥ १४४ नोलतो दक्षिणस्यां तु सहस्र कूटयुग्मकम् । सीतायाः प्राक्तटे चित्र विचित्रमपरे तटे !। १४५
। १००० । निषधस्योत्तरस्यां च सीतोदायास्तटद्वये । पुरस्ताद्यमकं कूटं मेघ फूटं तु पश्चिमम् ।।१४६ सहस्रं विस्तृतं मूले मध्ये तत्तुर्यहीनकम् । शिखरेऽर्धसहस्रं तु सहस्रं शुद्धमुच्छ्रितम् ।।१४७
१००० । ७५०। ५०० । प्रमाणेनैवमेकैकं कूटमाहुमहर्षयः । कूटसंज्ञासुरास्तत्र मोदन्ते सुखिनः सदा' ॥१४८ साधे सहस्र नीलाद् द्वे नोलनामा ह्रदस्ततः । कुरुनामा च चन्द्रश्च तस्मादरावतः परम् ।।१४९
। २५००। माल्यवान् दक्षिणोणे] नद्यां सहस्रार्धान्तराश्च ते। पद्महदसमा मानैरायता दक्षिणोत्तरम् ॥१५०
। ५०० ।
मेरुके दक्षिण-पश्चिममें सीतोदाके पश्चिम तटपर निषध पर्वतके समीपमें उत्तम रजतमय स्थल है ।।१४२।। वहांपर शाल्मलि वृक्षका अवस्थान बतलाया गया है। उसका वर्णन जब वृक्षके समान है। उसकी दक्षिण शाखापर उत्तम सिद्धायतन है ।।१४३।। शेष दिशागत शाखाओंपर तीन भवन हैं। उनमें देवकुरु अधिवासी वेणु और वेणुधारी देव रहते हैं ॥१४४।। नील पर्वतसे दक्षिणकी ओर हजार (१०००) योजन जाकर सीता महानदीके पूर्व तटपर चित्र और पश्चिम तटपर विचित्र नामक दो कूट हैं ।।१४५।। निषध पर्वतको उत्तर दिशामें भी सीतोदा महानदीके दोनों तटोंमेंसे पूर्व तटपर यमककूट और पश्चिम तटपर मेघकूट स्थित है ।।१४६॥ इन कूटोंका विस्तार मूल में एक हजार (१०००) योजन, मध्य में उससे चतुर्थ भाग हीन अर्थात् साढ़े सात सौ (७५०) योजन और शिखरपर अर्ध सहस्र (५००) योजन प्रमाण है । ऊंचाई उनकी शुद्ध एक हजार योजन मात्र है ॥१४७।। इस प्रकार महर्षि जन उक्त कूटोंमेंसे प्रत्येक कटका प्रमाण बतलाते हैं। उनके ऊपर सदा सुखी रहनेवाले कटनामधार
धारी देव आनंदपूर्वक रहते हैं ।।१४८ ॥
नील पर्वतके दक्षिण में सार्ध दो हजार अर्थात् अढ़ाई हजार (२५००) योजन जाकर नील, कुरु, चन्द्र, उसके आगे ऐरावत और माल्यवान् ये पांच द्रह सीता. नदीके मध्यमें हैं। ये प्रमाण में पद्मद्रहके समान होते हुए दक्षिण-उत्तर आयत हैं । इनके मध्य में पांच सौ (५००)
१ आ प अतोऽग्रे निषधस्योत्तरस्यां च' इत्यादि इलोकः (१४६) पुनलिखितोऽस्ति । २ आ प नीला द्वे ।
लो. ३
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