________________
- १.१३२] प्रथमो विभागः
[१५ यो ७११४३ ।।।। त्रिपञ्चाशत्सहस्राणि ज्या षष्टिश्च चतुःशती । अष्टादशाधिका चापं कलाश्च द्वादशाधिकाः ॥१२५
५३००० । ६०४१८ । १३ । मेरोः पूर्वोत्तरस्यां वै सीतापूर्वतटात्परम्' । आसन्नं नीलशैलस्य स्थलं जम्ब्वाः प्रकीर्तितम् ॥१२६ अर्धयोजनमुद्विद्धा उद्वेधाष्टमरुध्रिकाः । वेदिका रत्नसंकीर्णा स्थलस्योपरि सर्वतः ॥१२७
स्थले सहस्रार्धपृथौ २ मध्येऽष्टबहले पुनः । अन्ते द्विकोशबहले जाम्बूनदमये शुभे ॥१२८ द्वादशष्टौ च चत्वारि पलमध्योर्ध्वविस्तृता । पीठिकाष्टोच्छिता तम्या द्वादशाम्बुजवेदिकाः।।१२९ द्वियोजनोच्छितस्कन्धा मूले गव्यूतिविस्तृता । अष्टयोजनशाखा सा त्ववगाढायोजनम् ॥१३०
। को
।
अश्मगर्भ स्थिरस्कन्धा वज्रशाखा मनोरमा। भ्राजते राजितैः पत्रैरङकुरैर्मणिजातिभिः ॥१३१ फलैर्मृदङ्गसंकाशर्जम्बूः स्तूपसमाकृतिः । पृथिवीपरिणामा सा जीवावक्रान्तिजातिका ( ? )॥१३२
कुरुक्षेत्रका वृत्तविस्तार है ।।१२४॥ कुरुक्षेत्रकी जीवाका प्रमाण तिरेपन हजार (५३०००) योजन तथा उसके धनुषका प्रमाण साठ हजार चार सौ अठारह योजन और बारह कला (६०४१८३३) प्रमाण है ॥१२५।।
मेरु पर्वतके पूर्व-उत्तर (ईशान) कोणमें सीता नदीके पूर्व तटपर नील पर्वतके पासमें जंबू वृक्षका स्थल बतलाया गया है ॥१२६॥ इस स्थलके ऊपर सब ओर आधा योजन ऊंची और ऊंचाईके आठवें भाग (यो.)प्रमाण विस्तारवाली रत्नोंसे व्याप्त एक वेदिका है।।१२७।। पांच सौ योजन विस्तारवाले और मध्यमें आठ योजन तथा अन्त में दो कोस बाहल्यसे संयुक्त
। उत्तम स्थलके ऊपर मलमें. मध्यमें और ऊपर यथाक्रमसे बारह, आठ और चार योजन विस्तृत तथा आठ योजन ऊंची जो पीटिका है उसके बारह पद्मवेदिकायें हैं ।।१२८ -१२९।। इस स्थलके ऊपर जो जंबू वृक्ष स्थित है उसका स्कंध (तना) दो योजन ऊंचा, मूलमें एक कोस विस्तृत और आधा योजन अवगाहसे संयुक्त है। उसकी आठ योजन दीर्घ चार शाखायें हैं ॥१३०॥ हरित् मणिमय स्थिर स्कन्धवाला एवं वज्रमय शाखाभोंसे मनोहर वह वृक्ष विविध मणिभेदोंसे शोभायमान पत्रों एवं अंकुरोंसे सुशोभित है ॥१३१।। मृदंग जैसे फलोंसे स्तूपके समान आकृतिको धारण करनेवाला वह जंबू वृक्ष पृथिवीके परिणामस्वरूप......(?)॥१३२॥
१५ पूर्वोत्तरात्परं । २ व उद्वेदाष्ट । ३ ब ०धं पृथौ। ४ ब मूले । ५ प जम्बूस्तूप ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org