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१४] लोकविभाग:
[ १.११६ - ते नाभिगिरयो नाम्ना तानप्राप्याईयोजनात् । प्रदक्षिणगता नद्यः उभे मन्दरतोऽपि च ॥११६ शिखरेषु गृहेष्वेषां स्वातिश्चारण एव च । व्यन्तरः पद्मनामा च प्रभासश्च वसन्ति ते ॥११७ भरताद्यानि गङ्गाद्या हिमाहाद्याश्च पर्वताः। धातकोखण्डके द्विद्विः पुष्करार्धे च संख्यया।।११८ द्वीपान् व्यतीत्य संख्येयान् जम्बूद्वीपोऽन्य इष्यते। तत्र सन्ति पुराण्येषामिह ये वणिताः सुराः ॥११९ त्रयस्त्रिंशत्सहस्राणि षट्छतानि चतुष्कलाः । अशोतिश्चतुरग्रा च विदेहानां तु विस्तृतिः ॥ १२०
यो ३३६८४। । नीलमन्दरयोर्मध्ये उत्तराः कुरवः स्थिताः । मेरोश्च निषधस्यापि' देवाह्वाः कुरवः स्मृताः ॥१२१ विदेहविस्तृतिः पूर्वा मन्दरव्यासजिता । तदधं कुरुविस्तारो दृष्टः सर्वज्ञपुंगवैः ॥१२२ एकादश सहस्राणि शतान्यष्टौ च विस्तृताः । द्विचत्वारिंशदप्राणि कुरवो द्वे कले' तथा ॥ १२३
यो ११८४२।३। चत्वारिंशच्छतं त्रीणि सहस्राण्येकसप्ततिः । चतुःकला नवांशश्च कुरुवृत्तं विदुर्बुधाः ॥१२४
समान कान्तिवाले हैं; ऐसा केवलज्ञानियों के द्वारा देखा गया है ।।११५।। वे पर्वत नाभिगिरि इस नामसे प्रसिद्ध हैं। रोहित् और रोहितास्या आदि नदियां इन पर्वतोंसे आधा योजन इधर रहकर तथा दो (सीता और सीतोदा) नदियां मंदर पर्वतसे आधा योजन इधर रहकर प्रदक्षिण रूपसे चली जाती हैं ॥११६।। इन पर्वतोंके शिखरोंपर स्थित गृहोंमें क्रमशः स्वाति, चारण, पद्म और प्रभास नामक व्यन्तर देव रहते हैं ॥११७।। भरतादिक क्षेत्र, गंगादिक नदियां तथा हिमवान् आदि पर्वत; ये सब धातकीखण्ड द्वीपमें और पुष्करार्ध द्वीप में जम्बूद्वीपकी अपेक्षा संख्यामें दूने दूने हैं ।।११८॥
संख्यात द्वीपोंको लांघकर दूसरा एक जम्बूद्वीप है। वहांपर जिन व्यन्तर देवोंका यहां अभी वर्णन किया गया है उनके पुर हैं ।।११९।।
विदेहक्षेत्रोंका विस्तार तेतीस हजार छह सौ चौरासी योजन और चार कला (३३६८४६१) प्रमाण है ।।१२०॥ नील पर्वत और मेरु पर्वतके मध्यमें उत्तरकुरु स्थित हैं। मेरु और निषध पर्वतोंके मध्य में देवकुरुओंका स्मरण किया गया है ।।१२१।। पूर्वनिर्दिष्ट विदेहके विस्तारमेंसे मंदर पर्वतके विस्तारको घटा कर आधा करनेपर कुरुक्षेत्रोंका विस्तार होता है, जो कि सर्वज्ञ देवोंके द्वारा प्रत्यक्ष देखा गया है ॥१२२।। कुरुक्षेत्रोंका उक्त विस्तार ग्यारह हजार आठ सो ब्यालीस योजन और दो कला (११८४२११) प्रमाण है ॥१२३।। इकत्तर हजार एक सौ तेतालीस योजन और चार कला (७११४३३) तथा एक कलाका नौवां अंश (१९) इतना
१ आ प ०श्चापि । २ प कुले।
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