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लोकविभागः
[ १.८५
योजनोच्छ्रयविष्कम्भं सलिलादधं मुद्गतम् । गव्यूतिकणिकं पद्मं तत्र श्री रत्नवेश्मनि ॥ ८५
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चत्वारिंशच्छतं चैव सहस्राणामुदाहृतम् । शतं पञ्च दशायं च परिवारः श्रीगृहस्य सः ॥ ८६
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। १४०११५ ।
होर्धृतिः कीतिबुद्धी च लक्ष्मीश्चैव हृदालयाः । शक्रस्य दक्षिणा देव्य ईशानस्योत्तरा स्मृताः ॥८७ गङ्गा पद्मदात् सिन्धू रोहितास्था च निर्गताः । रोहिच्च हरिकान्ता च महापद्म हदात् स्नुते ॥८८ निषेधाद्धरिच्च सोतोदा महानद्यौ विनिर्गते । सीता च नरकान्ता च प्रस्नुते केसरि ३ ह्रदात् ॥८९ नारी च रूप्यकूला च रुग्मिशैलादधोगते । सुवर्णा च तथा रक्ता रक्तोदापि च षष्ठतः ॥ ९० गङ्गावज्रमुख व्यासः क्रोशः षड्योजनानि च । अर्धक्रोशो ऽवगाहस्तु सर्वमन्ते दशाहतम् ।।९१ यो ६२ को १ को ५ ( ? )
तीन दक्षिण के तीनके समान) क्रमशः महापद्म, तिगिछ, केसरी, महापुण्डरीक और पुण्डरीक ये पांच तालाब स्थित हैं || ८४ ॥ पद्म हृदमें एक योजन ऊंचाई व विस्तारवाला, जलसे आधा (३) योजन ऊंचा और एक कोस विस्तृत कणिकासे संयुक्त कमल है। इसके ऊपर रत्नमय भवनमें श्री देवीका निवास है || ८५ ॥ श्री देवीके गृहके परिवारस्वरूप वहां एक सौ चालीस हजार अर्थात् एक लाख चालीस हजार एक सौ पन्द्रह ( १४०११५ ) अन्य गृह हैं ॥। ८६ आगे महापद्म आदि हृदोंमें क्रमसे ही, धति, कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी इन देवियोंके भवन हैं। इनमें दक्षिणकी देवियां ( श्री, ही और धृति ) सौधर्म इन्द्रकी और उत्तरकी (कीर्ति, बुद्धि और लक्ष्मी) देवियां ईशान इन्द्रकी स्मरण की गयी हैं ॥ ८७ ॥
पद्म हृदसे गंगा, सिन्धू और रोहितास्या ये तीन महानदियाँ, तथा महापद्म हदसे रोहित और हरिकान्ता ये दो महानदियां निकली हैं ॥ ८८ ॥ निषेध पर्वतस्य हृदसे हरित् और सीतोदा महानदियां तथा केसरी ह्रदसे सीता और नरकान्ता महानदियां निकली हैं ॥ ८९ ॥ रुग्म शैलके ऊपर स्थित हदसे नारी और रूप्यकूला तथा छठे ह्रदसे सुवर्णकूला, रक्ता और रक्तोदाये महानदियां निकली हैं ॥९०॥
गंगा नदीका वज्रमय मुखविस्तार एक कोस और छह (६३) योजन, अवगाह आधा (३) कोस तथा अन्तिम विस्तार मुखविस्तार से दस गुना (६२२ यो. ) है ।। ९१ ॥ | यह गंगा नदी
१ प ०च्छ्रिय । २ आ प सुते । ३ आ प प्रस्तुते केसरी ।
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