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लोकविभागः लक्षस्थानात् क्रमाद् ग्राहयः सप्त द्वे द्वे षडेककम् । त्रीणि चास्य परिक्षेपो योजनानां प्रमाणतः ।। ८ तिस्रो गव्यूतयश्चान्या अष्टाविंशधनुःशतम् । त्रयोदशाङगुलानि स्युः साधिकं चार्धमागुलम् ।। ९
यो ३१६२२७ को ३ ध' १२८ अं १३ सा३ ।। भारतं दक्षिणे वर्षे [] तत्र हैमवतं परम् । हरिवर्षविदेहाश्च रम्यकं च हिरण्यवत् ।। १० ऐरावतं च द्वीपान्ते इति वर्षाणि नामतः । भवेयुरत्र सप्तैव षड्वास्यधरपर्वताः ॥ ११ हिमवानादितः शैलः परतश्च महाहिमः । निषधश्च ततो नीलो रुग्मी च शिखरी च ते ।। १२ हेमार्जनमयो शैलौ तपनीयमयोऽपरः । वैडूर्यो रजतश्चान्यः सौवर्णश्चर क्रमात् स्थिताः ॥ १३ षड्विंशतिशतानि स्युः पञ्च योजनसंख्यया । एकाविशतेर्भागाः षट् च दक्षिणपार्थवम् ॥ १४
यो ५२६ भा । वर्षात्तु द्विगुणः शैलः शैलाद्वषं च तत्परम् । इत्या विदेहतो विद्यात्ततो हानिश्च तत्समा ।। १५ जम्बूदीपस्थ भागः स्यान्नवत्यात्र शतस्य यः । भारतं तं विदुः प्राज्ञाः संख्यानज्ञानपारगाः ॥ १६
प्रमाण अंकक्रमसे सात, दो, दो, छह, एक और तीन (३१६२२७) अर्थात् तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन, तीन गव्यूति (कोस), एक सौ अट्ठाईस धनुष और साधिक साढे तेरह अंगुल मात्र है- यो. ३१६२२७ को. ३ ध. १२८ अं. १३३ ॥ ८-९ ॥ उक्त जम्बूद्वीपके भीतर दक्षिणकी ओर भारतवर्ष है। उसके आगे हैमवत, हरिवर्ष, विदेह, रम्यक, हिरण्यवत् और द्वीपके अन्तमें ऐरावत; इस प्रकार इन नामोंसे संयुक्त सात क्षेत्र तथा ये छह वर्षधर पर्वत हैं- आदिमें हिमवान् शैल, फिर महाहिमवान् , निषध, नील, रग्मी और शिखरी ॥१०-१२॥ वे पर्वत क्रमसे सुवर्ण, चांदी, तपनीय, वैडूर्य, रजत और सुवर्ण स्वरूपसे स्थित हैं ।।१३॥ दक्षिण पार्श्वभागमें स्थित भरतक्षेत्रका विस्तार पांच सौ छब्बीस योजन और एक योजनके उन्नीस भागोंमेंसे छह भाग प्रमाण है - ५२६ यो. ।।१४।। क्षेत्रसे दूना पर्वत और फिर उससे दूना आगेका क्षेत्र है। यह क्रम विदेह क्षेत्र पर्यंत जानना चाहिये । आगे इसी क्रमसे उनके विस्तारमें हानि होती गई है ॥ १५॥ यहां जम्बूद्वीपका जो एक सौ नब्बैवाँ भाग है उसे संख्याज्ञानके पारगामी विद्वान् भारत वर्ष मानते हैं । विशेषार्थ- जम्बूद्वीपका विस्तार एक लाख ( १००००० ) योजन प्रमाण है। उसके उपर्युक्त क्रमसे ये १९० विभाग हुए हैं- १ भरत + २ हिमवान् + ४ हैमवत + ८ महाहिमवान् + १६ हरिवर्ष + ३२ निषध+ ६४ विदेह + ३२ नील + १६ रम्यक + ८ रुग्मी + ४ हैरण्यवत +२ शिखरी और + १ ऐरावत=१९० । इसीलिये जम्बूद्वीपके विस्तारमें १९० का भाग देकर लब्धको अभीष्ट क्षेत्र अथवा पर्वतके विभागोंसे गुणित करनेपर उसके विस्तारका प्रमाण ज्ञात हो जाता है। जैसे - १००००० ४३२ = १६८४२३१. यो. निषध व नील पर्वतका विस्तार ॥१६॥
१ ब दं। २ प ब सौवराश्चि । ३ प संख्याज्ञानपारगाः ।
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