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सिंहसूरषिविरचितः लोकविभागः
[प्रथमो विभागः] लोकालोकविभागज्ञान् भक्त्या स्तुत्वा जिनेश्वरान् । व्याख्यास्यामि समासेन लोकतत्त्वमनेकधा॥१ क्षेत्रं कालस्तथा तीर्थ प्रमाणपुरुषः सह । चरितं च महत्तेषां पुराणं पञ्चधा विदुः ॥ २ समन्ततोऽप्यनन्तस्य वियतो मध्यमाश्रितः । त्रिविभागस्थितो लोकस्तिर्यग्लोकोऽस्य' मध्यगः ॥३ जम्बूद्वीपोऽस्य मध्यस्थो मन्दरस्तस्य मध्यगः । तस्माद्विभागो लोकस्य तिर्यगूवोऽधरस्तथा ।। ४ तिर्यग्लोकस्य बाहल्यं मेर्वायामसमं स्मृतम् । तस्मादूो भवेदूवो ह्यधस्ताव[द]धरोऽपि च ।। ५ मल्लरीसदशो मध्यो वेत्रासनसमोऽधरः । ऊवा मृदङगसंस्थान इति लोकोऽहतोदितः ॥ ६ योजनानां शतं पूर्ण सहस्रगुणितं च तत् । जम्बूद्वीपस्य विस्तारो दृष्टः केवलदृष्टिभिः ॥ ७
१००००० ।
लोक और अलोकके विभागको जाननेवाले तीर्थंकरोंकी भक्तिपूर्वक स्तुति करके यहां मैं संक्षेप में अनेक प्रकारके लोकतत्त्वका व्याख्यान कहूंगा ॥१॥ क्षेत्र, काल, तीर्थ तथा प्रमाणपुरुषोंके साथ उनका महान् चरित्र भी; इस प्रकार पुराण पांच प्रकारका जानना चाहिये ॥ २ ॥ यह लोक जिसका कि चारों ओर अन्त नहीं है ऐसे अनन्त आकाशके मध्य में स्थित है। इसके तीन विभाग हैं-ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्यग्लोक (मध्यलोक)। इनमें तिर्यग्लोक इसके मध्यमें स्थित है ॥३॥ इसके मध्य में जम्बूद्वीप स्थित है और उसके भी मध्यमें मंदर पर्वत (मेरु)स्थित है। उसीसे लोकके ये तीन विभाग हैं- तिर्यक, ऊर्ध्व और अधर ॥ ४ ॥ इनमें तिर्यग्लोकका बाहल्य (मुटाई) मेरुकी उंचाई (१००००० यो.) के बराबर माना गया है। उक्त मेरुके ऊपर ऊर्ध्वलोक और उसके नीचे अधरलोक स्थित है ॥ ५ ॥ मध्यलोक झालरके सदृश, अधरलोक वेत्रासनके समान, तथा ऊर्ध्वलोक मृदंग जैसा है। इस प्रकारका यह लोकका आकार अरिहन्त भगवान के द्वारा कहा गया है ॥ ६ ॥ केवलियोंके द्वारा जम्बूद्वीपका विस्तार सहस्रसे गुणित पूर्ण सो योजन अर्थात् एक लाख (१०००००) योजन प्रमाण देखा गया है ॥७॥ उसकी परिधिका
पलोकस्य । २ व 'दू? । ३ व पधरो।
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