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________________ ४६ . ] विषय चमरेन्द्रादिकों के सामानिकादि देवोंकी संख्या चमरेन्द्रादिकोंकी देवियोंकी संख्या इन इन्द्रोंके पारिषदादि देवोंकी देवियोंकी संख्या इन्द्रोंका अप्रधान परिवार सामानिक आदि देवोंकी इन्द्रोंसे समानता - असमानता चमरेन्द्रादि सब देवोंकी आयुका प्रमाण असुरकुमारादिकोंका शरीरोत्सेध इन्द्रोंके भवनस्थ जिनभवन लोकविभागः असुरकुमारादिकोंके चैत्यवृक्ष चैत्यवृक्षों व स्तम्भोंके आश्रित जिनप्रतिमायें भवनवासी इन्द्रोंके मुकुटचिह्न मरेन्द्र व सौधर्मेन्द्र आदिमें प्राकृतिक द्वेषभाव व्यन्तर व अपद्धिक आदि भवनवासियोंके भवनोंका अवस्थान असुरकुमारोंकी गति भवनवासियोंकी ऋद्धि पुण्यसे प्राप्त होती है ८. आठवां विभाग बिलोंकी संख्या सब पृथिवियोंके समस्त श्रेणीबद्ध बिलोंकी संख्याके लानेके लिये करणसूत्र सब पृथिवियोंके समस्त तथा दिशागत व विदिशागत श्रेणीबद्धोंकी संख्या Jain Education International श्लोकसंख्या ३९-५२ ५३-६० ६१-६६ ६७ ६८-६९ ७०-८३ ८४ ८५ रत्नप्रभा पृथिवीके ३ भाग व उनकी मुटाई। अब्बहुल भाग में प्रथम नरकके बिलोंका अवस्थान शर्कराप्रभादि अन्य छह पृथिवियों के नाम इन ७ पृथिवियोंके गोत्रनामोंका निर्देश शर्कराप्रभादि पृथिवियोंका बाहल्य सातों पृथिवियों व लोकतलके बीच अन्तर ८ इन पृथिवियोंके नीचे व लोकके बाह्य भाग में स्थित ३ वातवलयोंका वर्ण व उनकी मुटाई ९-१४ रत्नप्रभादि ७ पृथिवियोंमें स्थित नारक पटलोंकी संख्या, बाहल्य व उनके मध्यगत अन्तरका प्रमाण For Private & Personal Use Only ८६-८७ ८८-८९ ९०-९१ ९२-९३ ९४-९७ ९८ ९९ १५-२१ उन पटलोंमें स्थित ४९ इन्द्रक बिलोंके नाम २२- ३० ३१-३३ रत्नप्रभादि पृथिवियोंके समस्त नारक बिलोंकी संख्या व उनका विस्तारप्रमाण धर्मा-वंशा आदि उन पृथिवियोंमें स्थित इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंकी संख्या ३४-४७ प्रथम व अन्तिम इन्द्रकों के बीच में स्थित शेष इन्द्रकोंके विस्तारको ज्ञात करनेके लिये हानि - वृद्धिका प्रमाण सीमन्तक आदि उन इन्द्रक बिलोंकी दिशाओं और विदिशाओं में स्थित श्रेणीबद्ध १-३ ४ 6) ४८-४९ ५०-५१ ५२ ५३-५५ www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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