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विषय-सूची
[४५ विषय
श्लोकसंख्या कृत्तिका आदि नक्षत्रोंके देवता
१९४-९६ रौद्र व श्वेत आदि मुहूर्तविशेषोंका निर्देश
१९७-२०० समय व आवलि आदिरूप व्यवहारकालका प्रमाण
२०१-५ सूर्य के अभ्यन्तर मार्गमें होनेपर सब क्षेत्रोंमें दिन-रात्रिका प्रमाण
२०६ चक्षु इन्द्रियके उत्कृष्ट विषयक्षेत्रका प्रमाण
२०७-८ अयोध्यामें सूर्य कब देखा जाता है व कहां जाकर वह अस्त होता है
२०९-१० चक्षुके विषयक्षेत्रके लानेमें बाणका उल्लेख व आद्य वीथीका विस्तार
२११ निषध पर्वतकी पार्श्वभुजा
२१२ हरिवर्षका धनुष
२१३ निषध पर्वतका धनुष सब वर्षोंमें रात्रि-दिनकी समानता कब होती है
२१५ सूर्यके बाहय मण्डलमें होनेपर दिन-रात्रिका प्रमाण
२१६ सूर्यादि ज्योतिषियोंका मुख पश्चिम दिशामें होता है
२१७ ग्रहोंकी आवृत्तियां
२१८ सूर्य-चन्द्रादि क्रमसे ही प्रथम मण्डलमें परिक्रमा करते हैं
२१९ भरत व हिमवान् आदिके ऊपर संचार करनेवाले ताराओंकी संख्या
२२०-२२ लवणोद व धातकीखंड आदिमें तारासंख्या
२२३-२४ अढाई द्वीपमें नक्षत्र, ग्रह, अल्पकेतु, महाकेतु, चन्द्र-सूर्यवीथियों और ताराओंका प्रमाण २२५-२९ चन्द्र-सूर्यादिकी आयुका प्रमाण
२३०-३१ चन्द्र और सूर्य की चार चार अग्रदेवियां व उनकी परिवारदेवियों एवं विक्रियाका प्रमाण २३२-३४ ज्योतिष्क देवियोंकी आयु और सर्वनिकृष्ट देवोंकी देवियोंका प्रमाण
२३५ अठासी ग्रहों आदिके संचार आदिको ग्रन्थान्तरसे जान लेनेकी सूचना
२३६ ७. सातवां विभाग अधोलोकके संक्षेपके कहनेकी प्रतिज्ञा चित्रा-वज्रा आदि १६ पृथिवियोंके नाम व उनका अवस्थान
२-५ सत्तरहवीं (पंक भाग) व अठारहवीं (अब्बहुल भाग) पृथिवीका बाहल्य रत्नप्रभा पृथिवीकी सार्थकतापूर्वक चित्राके ऊपर व्यन्तरोंके आलयोंका निर्देश ८-१० १७८००० यो. विस्तृत रत्नप्रभाके मध्यमें भवनवासी देवोंके भवनोंका निर्देश भवनवासियोंके नामोल्लेखपूर्वक उनके भवनोंकी संख्या, जिनभवनोंकी संख्या और उन भवनोंका विस्तारप्रमाण ।
१२-१८ उन सुन्दर व सुखसामग्रीसे परिपूर्ण भवनोंमें भवनवासी देवोंका निवास
१९-२५ उन १० भवनवासियोंके इन्द्रोंका निर्देश
२६-३१ चमरेन्द्रादिकोंके भवनोंकी संख्या
३२-३७ उपन्द्रोंका उल्लेख
यो m .
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