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________________ विषय-सूची [४३ 16 :::* * * * विषय श्लोकसंख्या ज्योतिष्क देव व उनके गृह ज्योतिष्क देवोंके अवस्थानका क्रम ४-६ ताराओंके अन्तरका निर्देश सूर्यबिम्बका विवरण ८-१० केतु व राहुके विमान ११-१२ शुक्रका विमान व उसकी किरणोंका प्रमाण बुध, मंगल व शनिकी पीठका विस्तार ताराओंका विस्तार सूर्यादिकोंके बाहल्यका प्रमाण सूर्य-चन्द्रादिके विमानवाहक देवोंकी संख्या १७-१० ज्योतिर्लोकका स्वभाव अभिजित आदि नक्षत्रोंका संचार चन्द्रादिकोंकी गतिकी विशेषता राहु-केतु द्वारा क्रमसे चन्द्र-सूर्यका आच्छादन ज्योतिष्क देवोंकी मेरुसे दूरीका निर्देश जंबू द्वीपादिकोंमें चन्द्र-सूर्योकी संख्या २४-२७ एक चन्द्र सम्बन्धी ग्रहादिकोंकी संख्या २८ जंबूद्वीपमें सूर्य-चन्द्रका संचारक्षेत्र व वीथिसंख्या २९-३० लवणसमुद्र आदिमें सूर्य-चन्द्रकी वीथिसंख्या ३१-३४ मानुषोत्तर पर्वतके आगे सूर्य-चन्द्रके वलय व उनमें स्थित उनकी संख्या ३५-४० प्रथमादि वीथियोंमें मेस्से सूर्योका अन्तर ४१-४५ प्रथमादि वीथियोंमें दोनों सूर्योके मध्यका अन्तर ४६-४८ प्रथमादि वीथियोंकी परिधिका प्रमाण ४९-५३ प्रथमादि वीथियोंमें मेरुसे चन्द्रोंका अन्तर ५४-५८ मध्य व बाह्य वीथिमें चन्द्रका मेरुसे अन्तर प्रायः सूर्य केही समान होता है बाह्य अन्तरमेंसे उत्तरोत्तर एक एक चय हीन करनेसे उपान्त्य आदि अन्तर होते हैं ६० प्रथमादि मण्डलोंमें दो चन्द्रोंके मध्य अन्तरका प्रमाण ६१-६४ प्रथमादि मण्डलोंमें परिधिका प्रमाण ६५-६८ लवण समुद्रमें दो सूर्योके बीच अन्तर लवण समुद्र में संचार करनेवाले सूर्यका जंबूद्वीपकी वेदिकासे अन्तर धातकीखंड, कालोद और पुष्करार्धमें दो सूर्योका व उनका विवक्षित जगतीसे अन्तर ७१-७६ आदि, मध्य और अन्तमें सूर्य की गतिकी विशेषता सूर्यकी मुहूर्त परिमित गतिका प्रथमादि वीथियोंमें प्रमाण ७८-८२ चन्द्र के द्वारा एक मण्डलको पूरा करनेका काल ८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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