________________
___ ९२
४२]
लोकविधानः विषय
श्लोकसंख्या अरुण द्वीपको वेष्टित करके स्थित अरुणवर समुद्रका विस्तार
५५-५६ अरुणवर समुद्रके ऊपर उठे हुए अरिष्ट अन्धकार और ८ कृष्णराजियोंका निर्देश ५७-५९ कुण्डल द्वीपके मध्यमें स्थित कुण्डल पर्वतका वर्णन रुचक द्वीपमें स्थित रुचक पर्वत व उसके कूटोंपर स्थित दिक्कुमारियोंका वर्णन
६८-८९ अन्तिम स्वयंभूरभण द्वीपके मध्यमें स्थित स्वयंप्रभ पर्वतका विस्तारादि
९०-९१ मानुषोत्तर आदि ४ पर्वतोंकी आकृति ५. पांचवां विभाग सर्वज्ञ जिनोंको नमस्कार कर कालके कथनकी प्रतिज्ञा अवसर्पिणी और उत्सर्पिणीके विभागभूत सुषमासुषमादि ६ कालोंका प्रमाण
२-७ इनमेंसे प्रथम तीन कालोंमें उत्पन्न हुए मनुष्योंका आकारादि
८-१२ दस प्रकारके कल्पवृक्ष व उनका कार्य
१३-२४ इन तीन कालोंमें वर्तमान नर-नारियोंकी अवस्था
२५-३४ नील-निषधादि पर्वतों व कुरुक्षेत्रादिमें प्रवर्तमान कालोंका निर्देश
३५-३७ कुलकरोंकी उत्पत्ति व तत्कालीन परिवर्तित अवस्था
३८-११५ इन कुलकरोंके पूर्व भवकी अवस्था
११६-१८ कुलकरोंमें किन्हींको जातिस्मरण व किन्हींके अवधिज्ञानकी उत्पत्ति
११९ मनु आदि नामोंकी सार्थकता
१२०-२१ वृषभदेव व भरतका निर्देश
१२२ कुलकरों व भरतके द्वारा क्रमसे निश्चित की गई दण्डव्यवस्था
१२३-२५ पूर्वांगादि कालभेदोंका निर्देश
१२६-३७ कर्मभूमिका प्रादुर्भाव व धर्मका उपदेश
१३८ असि-मसि आदि छह कर्मोका उपदेश
१३९-४० आदि जिनेन्द्रके द्वारा किया गया पुर-ग्रामादिका व्यवहार
१४१ तीर्थकर व चक्रवर्ती आदिकी उत्पत्तिके योग्य कालका निर्देश
१४२ चतुर्थ कालकी विशेषता व उसके शाश्वतिक अवस्थानका क्षेत्र
१४३-४५ पंचम कालकी विशेषता
१४६-५१ पंचम कालके अन्त व छठे कालमें होनेवाली दुरवस्था
१५२-६४ भरत व ऐरावत क्षेत्रों में कालका परिवर्तन
१६५-६६ उत्सर्पिणी कालकी प्रारम्भिक अवस्था
१६७-७२ उत्सपिणी सम्बधी द्वितीय कालमें १००० वर्ष शेष रह जानेपर कुलकरोंकी उत्पत्ति १७३ तत्पश्चात् तीर्थंकरादि महापुरुषों की प्रादुर्भूति
१७४-७५ उत्सपिणीके चौथे, पांचवें व छठे कालका उल्लेख
१७६ ६. छठा विभाग सर्वज्ञको नमस्कार कर ज्योतिर्लोकके कथनकी प्रतिज्ञा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org