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लोकविभाग:
विषय
लोकसंख्या मेरुकी नैर्ऋत्यादि शेष ३ विदिशागत ४-४ वापियोंके नाम
२७९-८१ चूलिकाकी ईशानादि ४ विदिशाओं में स्थित पाण्डुका आदि ४ शिलाओंका वर्णन २८२-८९ सौमनस वन आदि ७ स्थानोंमें स्थित जिनभवनोंका निरूपण
२९०-३२० भद्रशाल, नन्दन और पाण्डुक वनमें स्थित जिनभवनोंके विस्तारादिकी विशेषता ३२१-२४ सब विजयाओं और जंबूवृक्षादिके ऊपर स्थित जिनभवनोंका विस्तारादि
३२५ कूटों व पर्वतादिकोंके वेदिकाका सद्भाव मेरुके मन्दर आदि १६ नामोंका निर्देश
३२७-२९ जंबूद्वीपकी वेदिका व उसका विस्तारादि
३३०-३४ वेदिकाके ऊपर स्थित प्रासादोंका वर्णन
३३५-४१ वेदिकाकी चारों दिशाओं में स्थित विजयादि नामक ४ तोरणोंका विस्तारादि । ३४२-४४ इस जंबूद्वीपसे संख्यात द्वीपोंके अनन्तर जो अन्य जंबूद्वीप है उसमें अपनी दिशाओंमें स्थित विजयादि देवोंके नगरोंकी प्ररूपणा
३४५-८२ उदाहरणपूर्वक प्रासादादिकोंकी अकृत्रिमता
३८३-८४ २. द्वितीय विभाग जिननमस्कारपूर्वक प्रथम समुद्र के व्याख्यानकी प्रतिज्ञा लवण समुद्रका अवस्थान और उसके विस्तार व परिधिका प्रमाण लवण समुद्रके विस्तारमें हानि-वृद्धि
५-८ लवण समुद्रकी आकृति उक्त समुद्रमें स्थित पातालोंका विवरण
१०-१७ वेलंधर नागकुमार देवोंके नगर
१८-२१ पातालोंके दोनों पार्श्वभागोंमें दो दो पर्वतों और उनके ऊपर रहने वाले देवोंका निरूपण २२-३० गौतम द्वीप व उसका रक्षक गौतम देव
३१-३२ इस समुद्र में स्थित ४८ अन्तरद्वीप और उनमें स्थित मनुष्योंका स्वरूप
३३-४८ लवण समुद्रकी जगती (वेदिका) विवक्षित द्वीप-समुद्रकी बाह्य आदि सूचियोंके लानेकी विधि विवक्षित द्वीप-समुद्र के जंबूद्वीप प्रमाण खण्डोंके लानेकी विधि लवणोदादिक द्वीप-समुद्रोंके उत्तरोत्तर दुगुणित विस्तारकी सूचना ३. तृतीय विभाग धातकीखण्ड द्वीपमें मेरु आदिका अवस्थान धातकीखण्डस्थ भरत क्षेत्रका विस्तार
७-१० वहांके हैमवतादि क्षेत्रोंका विस्तार अढ़ाईद्वीपस्थ पर्वतादिकोंकी वेदिका अढाईद्वीपस्थ कुण्ड, चैत्यवृक्ष व महावृक्षों आदिका विस्तार
२-४
११-१२
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