________________
३० ]
लोकविभागः
एकादश सहस्राणि यमवास्यां गतोच्छ्रयः । ततः पञ्च सहस्राणि पौणिमास्यां विवर्धते ॥ २- ७. यहां पूर्वार्धमें ग्रन्थकार यह कहना चाहते हैं कि कृष्ण पक्षमें क्रमशः ५००० यो. की हानि होकर अमावस्या के दिन वह ऊंचाई ११००० यो. रह जाती है । परन्तु वैसा भाव उन पदोंसे निकलता नहीं है ।
वस्तुतः ति. प. में निर्दिष्ट वह मत हरिवंशपुराण ( ५, ४३४ - ३७ ) में पाया जाता है और सम्भवतः उसीका अनुसरण प्रस्तुत लो. वि. में किया है तथा उसकी रचनासे कुछ भिन्नता प्रकट करनेके लिये इस रूपमें श्लोकरचना की गई है ।
इसके अतिरिक्त यहां ( २ - ३ ) उक्त अभिप्रायको पुष्ट करनेके लिये जो ' उक्तं च त्रिलोकप्रज्ञप्ती' कहकर ति. प. की गाथा दी गई है वह उसका समर्थन न करके उसके विपरीत उक्त जलशिखाके ऊपर उसकी ऊंचाईको ७०० यो. मात्र ही बतलाती है ।
३) ति. प. गा. ७-११५ में लोकविभागाचार्योंके मतानुसार सब ही ज्योतिषी देवोंकी नगरियोंका बाहल्य विस्तारके बराबर निर्दिष्ट किया गया है । यह मत प्रस्तुत लो. वि. में नहीं पाया जाता है । यहां तो श्लोक ६-९ व ६, ११-१५ में सूर्य-चन्द्रादि ज्योतिषियों के विमानोंका केवल विस्तार मात्र निर्दिष्ट किया है, उनके बाहल्यका उल्लेख ही नहीं किया है। हां, ठीक इसके आगे ' पाठान्तरं कथ्यते ' कहकर श्लोक १६ में मतान्तरस्वरूपसे सूर्य-चन्द्रादि ज्योतिषियोंके विमानोंके बाहल्यका प्रमाण अपने अपने विस्तारसे आधा अवश्य कहा गया है । यह मत ति. प. में उपलब्ध होता है । इस प्रकार जब प्रस्तुत ग्रन्थमें उक्त ज्योतिषी देवोंके विमानों के बाहल्यप्रमाणका कुछ उल्लेख ही नहीं है तब मतान्तरसे उनके बाहल्यप्रमाणका उल्लेख करना संगत नहीं प्रतीत होता । ति प में चूंकि पूर्वमें उक्त विमानोंका बाहुल्य विस्तारकी अपेक्षा आधा कहा जा चुका था, अत एव वहां लोकविभागाचार्योंके मतानुसार उसको विस्तारके बराबर बतलाना सर्वथा उचित व आवश्यक भी था ।
४ ) ति. प. गा. ९ - ९ में लोकविनिश्चय और लोकविभागके अनुसार सब सिद्धों की अवगाहनाका प्रमाण कुछ कम अन्तिम शरीरके बराबर निर्दिष्ट किया गया है । यह मत प्रस्तुत लो. वि. (११-६) में पाया जाता है । परन्तु इसी श्लोकमें उन सिद्धोंका अवस्थान जो गव्यूति ( कोस ) के चतुर्थ भाग ( ५०० धनुष ) में बतलाया है वह कुछ भिन्न ही प्रतीत होता है व उसकी संगति ५२५ धनुष प्रमाण अवगाहनासे मुक्त होनेवालोंके साथ नहीं बैठती है । ति. प. में इस विषयमें दो मत पाये जाते हैं । उनमें एक मतके अनुसार सिद्धोंकी उत्कृष्ट अवगाहना ५२५ धनुष और जघन्य ३३ हाथ तथा दूसरे मतके अनुसार वह उत्कृष्ट ३५० धनुष और जघन्य २ 3 हाथ प्रमाण निर्दिष्ट की गई है। बाहुबली आदि कितने ही ५२५ धनुषकी अवगाहना से सिद्ध हुए हैं । इसी अभिप्रायसे सम्भवतः ५२५ धनुष प्रमाण उनकी उत्कृष्ट अवगाहना कही गई है । दूसरे मतके अनुसार सिद्धों की वह अवगाहना चूंकि अन्तिम शरीर के तृतीय भागसे हीन मानी गई है " ;
१. प्रस्तुत लो. वि. में द्वितीय विभागके श्लोक ३, ५, ६, ७ ओर ८ का मिलान क्रमसे हरिवंशपुराण के ५, ४३४ से ३८ श्लोकोंसे कीजिये ।
२. देखिये ति प ७-३९, ६८, ८५, ९१, ९५, ९८ और १००.
३. ति. प. ९-६.
४. ति. प. ९-११.
Jain Education International
५. ति. प. ९-१०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org