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________________ दशमो विभागः [ १९३ - १०.१७१ ] पद्मा शिवा शशी चैव अज्जुका रोहिणीति च । नवमी च बला चेति अचिनी चाष्टमी मता ॥ १६२ षोडशस्त्रीसहस्राणि रूपोनानि प्रकुर्वते । अष्टावग्रमहिष्योऽपि परिवारोऽपि तत्समः ।। १६३ । १५९९९ । १५९९९ । द्वात्रिंशत्तु सहस्राणि सौधर्मेन्द्रस्य वल्लभाः । ' कनकश्रीर्मुखं चासां तावन्त्यस्तस्य योषितः ॥ १६४ । ३२००० । १६००००। कृष्णा च मेघराजी च रामा वै रामरक्षिता । वसुश्च वसुमित्रा च वसुरम्या वसुंधरा ॥१६५ ईशानस्यापत्न्यस्ताः सौधर्मस्येव वर्णना । देवी कनकमालेति वल्लभा चास्य कीर्तिता ॥ १६६ अष्टौ सहस्राण्येकस्याः परिवारोऽग्रयोषिताम् । वल्लभा अपि तावन्त्यस्तृतीयस्य द्विसप्ततिः ॥ १६७ । ८००० । ७२००० । द्वात्रिंशत्तु सहस्राणि विक्रियाश्चैकयोषितः । अयमेव क्रमो वाच्यो माहेन्द्रस्य च योषिताम् ॥ १६८ ।३२००० । चतुस्त्रिशत्सहस्राणि ब्रह्मेन्द्रस्य वरस्त्रियः । वल्लभा द्वे सहस्रे च तासु देवीषु वर्णिताः ॥ १६९ चतुःषष्टिसहस्राणि एकस्या अपि विक्रियाः । चतुः सहस्रसंयुक्ता अग्रदेव्योऽस्य भाषिताः ।। १७० । ४०००। तावन्त्य एव विज्ञेया देव्यो ब्रह्मोत्तरस्य तु । ब्रह्मवच्छेषमाख्येयं विक्रियादिषु योषिताम् ॥ १७१ पद्मा, शिवा, शची, अंजुका, रोहिणी, नवमी, बला और अचिनी ये आठ [सौधर्म इन्द्र की] अग्रदेवियां मानी गई हैं। वे आठों ही अग्रदेवियां एक कम सोलह हजार ( १५९९९) स्त्रियोंकी विक्रिया करती हैं। उतना ( १५९९९) ही उनका परिवार भी है ।। १६२-१६३ ।। सौधर्म इन्द्रके बत्तीस हजार ( ३२०००) वल्लभा देवियां हैं। उनमें मुख्य वल्लभा देवीका नाम कनकश्री है । उस सौधर्म इन्द्रकी उतनी [ ( १६०००×८) + ३२०००-१६००००] देवियां हैं ।। १६४ ।। कृष्णा, मेघराजी, रामा, रामरक्षिता, वसु, वसुमित्रा, वसुरम्या और वसुंधरा ये आठ ईशान इन्द्रकी अग्रदेवियां हैं। इनका वर्णन सौधर्म इन्द्रकी अग्रदेवियोंके समान है। उसके कनकमाला नामकी वल्लभा देवी कही गई है ।। १६५-६६ ।। तृतीय सनत्कुमार इन्द्रकी अग्रदेवियोंमेंसे प्रत्येकको आठ हजार परिवारदेवियां हैं । इतनी (८००० ) ही उसकी वल्लभा देवियां भी हैं। इस प्रकार तृतीय इन्द्रके सब बहत्तर हजार ( अग्रदेवियां ८ x परि. दे. ८००० +वल्लभा ८०००=७२०००) देवियां है। उनमें एक एक देवी बत्तीस हजार ( ३२०००) रूपोंकी विक्रिया करती है । यही क्रम माहेन्द्र इन्द्रकी भी देवियोंका कहना चाहिये ।। १६७-६८ ब्रह्म इन्द्रके चौंतीस हजार [ ( ४०००×८) + २००० ] उत्तम स्त्रियां हैं। उन देवियोंमें दो हजार (२०००) वल्लभा देवियां कही गई हैं। इसकी अग्रदेवियां चार चार हजार (४००० ) -परिवारदेवियोंसे संयुक्त कही गई हैं। उनमें प्रत्येक चौंसठ हजार (६४०००) रूपोंकी विक्रिया करती हैं ।। १६९-१७० ।। ब्रह्मोत्तर इन्द्रके भी उतनी ( ३४०००) ही देवियां जाननी चाहिये । देवियोंकी विक्रिया आदिके विषय में शेष वर्णन ब्रह्म इन्द्रके समान जानना चाहिये ।। १७१ ॥ १ ब कनकं । को. २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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