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________________ १९० लोकविभागः [१०.१३८त्रिशतं भूमिमागाढस्तस्माद्विगुणविस्तृतः । प्रासादस्त्रिशतोच्छायः शतारेन्द्रस्य भाषितः ॥१३८ ।३०। ६०।३००। चत्वारि च सहस्राणि पञ्चविशंपुनः शतम् । देव्यस्तस्य समाख्याताः सुसीमेति च वल्लभा॥१३९ ।४१२५॥ पञ्चवर्ग प्रविष्टा गां तस्माद् द्विगुणविस्तृताः । पञ्चाशे द्वे शते चोच्चाः प्रासादास्तस्य योषिताम्॥ ।२५।५०।२५०। उत्तरोऽत्र सहस्रारः शतारस्येव वर्णनम् । वल्लभा लक्ष्मणा नाम्ना देवी तस्य मनोहरा ॥१४१ शताराख्यात्तदुत्पद्य सप्तमं त्वच्युतेन्द्रकम् । दक्षिणावलिकायां च षष्ठे चारणसेवितम् ॥१४२ विशति च सहस्राणि विस्तृतं त्वारणं पुरम् । द्वे सार्धे गाहविस्तारः प्राकारोऽशीतिमुच्छितः॥१४३ ।२००००।६।८०। गोपुराणां शतं दिक्षु त्रिंशद्विस्तारकाणि च । शतोच्छ्रितानि सर्वाणि नगरस्यारणस्य तु ॥१४४ ।१००।३०।१००। पञ्चवर्ग त[ग]तो भूमि तस्माद्विगुणविस्तृतः । प्रासावश्चारणेन्द्रस्य सार्ध द्विशतमुच्छितः ॥१४५ ।२५।५०।२५०। द्वे सहस्र त्रिषष्टिश्च तस्य देव्यः प्रकीर्तिताः । अष्टावनमहिष्यश्च जिनदत्ता च वल्लभा ॥१४६ ।२०६३॥ प्रविष्टा विशति भूमि तस्माद्विगुणविस्तृताः । प्रासादा द्विशतोच्छाया देवीनामिति वणिताः ॥१४७ ।२०। ४०। २००। हैं ॥ १३७ ।। शतार इन्द्रका प्रासाद तीस (३०) योजन पृथिवीमें प्रविष्ट, इससे दूना (६०) विस्तृत और तीन सौ (३००) योजन ऊंचा कहा गया है ।। १३८ ॥ शतार इन्द्रके चार हजार एक सौ पच्चीस (४१२५) देवियां कही गई हैं । उसकी वल्लभा देवीका नाम सुसीमा है ॥१३९॥ उसकी देवियों के प्रासाद पच्चीस (५४५)योजन पृथिवी में प्रविष्ट, उससे दूने(५० यो.) विस्तृत और दो सौ पचास (२५०) योजन उंचे हैं ॥ १४० ॥ शतार इन्द्रककी उत्तर दिशामें स्थित आठवें श्रेणीबद्ध विमानमें सहस्रार इन्द्र रहता है । उसका वर्णन शतार इन्द्रकके समान है । उसके लक्ष्मणा नामकी मनोहर वल्लभा देवी है ।। १४१॥ __ शतार नामक इन्द्रकके उपर जाकर सातवां अच्युत इन्द्रक है । उसकी दक्षिण श्रेणी में स्थित छठे श्रेणीबद्ध विमानमें चारणोंसे सेवित व बीस हजार (२००००)योजन विस्तृत आरण पुर है । उसके प्राकारका अवगाह और विस्तार अढ़ाई (1) योजन तथा ऊंचाई अस्सी (८०) योजन है ॥ १४२-४३ ॥ आरण नगरकी चारों दिशाओंमें एक सौ एक सौ (१००-१००) गोपुरद्वार हैं । सब ही द्वार तीस (३०) योजन विस्तृत और सौ (१००) योजन ऊंचे हैं ।। १४४ ।। उस पुरमें जो आरण इन्द्रका प्रासाद है वह पच्चीस (२५) योजन पृथिवीमें प्रविष्ट उससे दूना (५० यो. ) विस्तृत और दो सौ पचास (२५०) योजन ऊंचा है ॥१४५।। उसकी देवियां दो हजार तिरेसठ (२०६३) कही गई हैं। उनमें आठ अग्रदेवियां और जिनदता नामकी वल्लभा देवी है ॥१४६।। देवियों के प्रासाद बीस (२०) योजन पृथिवीमें प्रविष्ट, उससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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