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-१०.१३७] दशमो विभागः
[ १८९ चत्वारिंशं शतं तस्य गोपुराणि चतुर्दिशम् । पञ्चाशतं च विस्तीणं चत्वारिंश-शतोच्छितम् ॥१३०
। १४०। ५०।१४०। पञ्चत्रिंशतमागाहो विस्तृतो द्विगुणं ततः । प्रासादः शुक्रदेवस्य 'सार्धत्रिशतमुच्छ्रितः॥१३१
। ३५ । ७० । ३५०। प्रविष्टास्त्रिशतं भौ[भूमौ द्विगुणं चापि विस्तृताः । प्रासादास्त्रिशतोच्छाया देवीनां तत्र वणिताः॥
।३०। ६०।३००। लान्तवार्धं प्रिया देव्यः शुक्रस्यापि च वणिताः । अष्टावग्रमहिष्यश्च नन्दा तासु च वल्लभा॥१३३
।८२५०। उत्तरोऽत्र महाशुको नन्दावत्यपि वल्लभा। शुक्रवत्परिवारोऽस्य नगरं च निदर्शितम् ॥१३४ शुक्राच्छतारमूवं स्यात्तस्माद्दक्षिणतो दिशि । त्रिशत्सहस्रविस्तीर्ण शातारं पुरमष्टमे ॥१३५
।३००००। त्रियोजनं गतो भूम्यां तावदेव च विस्तृतः। प्राकारः शतमुद्विद्धः सविंशशतगोपुरः ॥१३६
।३।३।१०० । १२० । चत्वारिंशत्स्वविस्तारं विशं च शतमुच्छितम् । एकैकगोपुरं विद्यात्तावन्त्येवान्यदिक्षु च ॥१३७
।४०। १२०।
ऊंचा प्राकार स्थित है ।। १२९ ॥ उसकी चारों दिशाओंमेंसे प्रत्येकमें एक सौ चालीस (१४०, गोपुरद्वार स्थित हैं । उनका विस्तार पचास (५०) योजन और ऊंचाई एक सौ चालीस (१४०) योजन है ।। १३० ।। उस पुरमें पैंतीस (३५) योजन अवगाहसे सहित, इससे दूना (७० यो. ) विस्तृत और साढ़े तीन सौ (३५०) योजन ऊंचा शुक्र देवका प्रासाद है ॥१३१॥ वहां शुक्र इन्द्रकी देवियोंके प्रासाद तीस (३०) योजन पृथिवीमें प्रविष्ट, इससे दूने (६०यो.) विस्तृत और तीन सौ (३००) योजन ऊंचे कहे गये है ।। १३२ ।। शुक्र इन्द्रकी प्रिय देवियां लान्तव इन्द्रकी देवियोंसे आधी (८२५०) निर्दिष्ट की गई हैं। उनमें आठ अग्रदेवियां और नन्दा नामकी वल्लभा देवी है ।। १३३ ।।।
शुक्र इन्द्रकके उत्तरमें दसवें श्रेणीबद्धमें महाशुक्र इन्द्रक रहता है। उसकी वल्लभा देवीका नाम नन्दावती है । इसका परिवार और नगर शुक्र इन्द्रके समान निर्दिष्ट किया गया है ।। १३४ ।।
__ शुक्र इन्द्रकके ऊपर शतार इन्द्रक स्थित है । उसकी दक्षिण दिशामें स्थित आठवें श्रेणीबद्ध विमानमें तीस हजार (३००००) योजन विस्तारवाला शतार इन्द्रका पुर है ॥१३५।। उस पुरको वेष्टित करके तीन (३) योजन पृथिवीमें प्रविष्ट, उतना (३ यो. ) ही विस्तृत और सौ (१००) योजन ऊंचा प्राकार स्थित है । उसकी प्रत्येक दिशामें एक सौ बीस (१२०) गोपुरद्वार हैं ।। १३६ ।। एक एक गोपुर द्वारका विस्तार चालीस (४०) योजन और ऊंचाई. एक सौ बीस (१२०) योजन है । इतने (१२०) ही गोपुरद्वार अन्य तीन दिशाओंमें भी स्थित
१ आप सार्ध। २१ शतारं।
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