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________________ दशमो विभागः [१८१ चतुर्दश शतान्येव अष्टाशीतिश्च तत्परे । षट्शतं षोडशान्यस्मिन् माहेन्द्रे त्यधिके शते ॥६२ ।१४८८।६१६ । २०३। षडशीतितिशतं ब्रह्मे नवतिश्चतुरुत्तरा । ब्रह्मोत्तरे परस्मिस्तु पञ्चविशं शतं भवेत् ॥६३ ।२८६ १ ९४ । १२५।। चत्वारिंशत्पुनः सैका कापित्ये शुक्रनामके । अष्टाग्रा खल पञ्चाशन्महत्येकानविंशतिः॥६४ ।४१। ५८।१९। शतारे पञ्चचञ्चाशदष्टावश ततः परे । पञ्चोने द्वे शते चापि बोद्धव्या आनतद्वये ॥६५ ।५५ । १८ । १९५।। शतमेकानषष्टिश्च आरणाच्युतयुग्मके। अयोविशं शतं विद्यादधस्तान्निःप्रकीर्णकाः ॥६६ ।१५९ । १२३ । करे। फिर उसको मुखमेंसे कम करके शेषको गच्छसे गुणित करनेपर सर्व संकलित धन प्राप्त होता है । जैसे- प्रकृत सौधर्म कल्पमें एक दिशागत श्रेणीबद्ध ६३ हैं। चूंकि इस कल्पके अधीन पूर्व, पश्चिम और दक्षिण इन तीन दिशागत श्रेणीबद्ध विमान हैं, अत एव इनको तीनसे गुणित करनेपर १८९ मुखका प्रमाण होता हैं; चयका प्रमाण यहां तीन और गच्छ ३१ है। अत एव उक्त सूत्रके अनुसार १ ४३=४५; (१८९-४५)४३१ = ४४६४; इसमें सौधर्म कल्पके ३१ इन्द्रक विमानोंको मिला देनेपर उपर्युक्त प्रमाण प्राप्त हो जाता है-४४६४+३१=४४९५. यही क्रम आगेके कल्पोंमें भी समझना चाहिये। आगे ऐशान कल्पमें चौदह सौ अठासी (१४८८), सनत्कुमार कल्पमें छह सौ सोलह (६१६) तथा माहेन्द्र कल्पमें दो सौ तीन (२०३) श्रेणीबद्ध विमान हैं ।। ६२॥ विशेषार्थ- उपर्युक्त ३१ इन्द्रक विमानोंकी केवल उत्तर दिशागत श्रेणीबद्ध विमान ही इस कल्पके अन्तर्गत हैं । अत एव यहां मुख ६३ चय १ और गच्छ ३१ हैं । उक्त प्रक्रियाके अनुसार यहां ऐशान कल्पमें ३१.४१=१५; (६३-१५)x ३१ = १४८८. श्रेणीबद्ध विमानोंका प्रमाण प्राप्त हो जाता हैं । सब (३१) इन्द्रक विमान चूंकि सौधर्म कल्पके अधीन हैं, अत एव उनका प्रमाण यहां नहीं जोड़ा गया है। सनत्कुमार कल्पमें ७ इन्द्रक विमानोंमेंसे प्रथम इन्द्रककी प्रत्येक दिशामें ३२ तथा आगे १-१ कम (३१, ३० आदि) श्रेणीबद्ध विमान हैं। अतएव यहां मुखका प्रमाण ३२४३=१६, चय ३ और गच्छ ७ है। अत: १४३=९; (९६ -९)x७=६०९; ६०९+ ७ इन्द्रक = ६१६ श्रे. ब. । माहेन्द्र कल्पमें * = ३; (३२-३)x ७% २०३श्रे.ब.। ब्रह्म कल्पमें दो सौ छयासी (२८६), ब्रह्मोत्तर कल्पमें चौरानब (९४) और लान्तव कल्पमें एक सौ पच्चीस (१२५) श्रेणीबद्ध विमान हैं ।। ६३ । ब्रह्म ४३=४३; (२५४३)-४३,७०५; ७०३४४+४ इ. वि. =२८६ श्रेणीबद्ध । ब्रह्मोत्तर ; २५-४१ x४-९४ श्रेणीबद। लान्तव (२१४३)+(२०४३) +२ इ. वि. १२५श्रेणीबद्ध। कापिष्ठ कल्पमें इकतालीस (४१), शुक्रमें अट्ठावन (५८) और महाशुक्रमें उन्नीस श्रेणीबद्ध विमान हैं ।। ६४ ॥ शतार कल्पमें पचपन (५५), सहस्रारमें अठारह (१८) और आनतयुगलमें पांच कम दो सौ (१९५) श्रेणीबद्ध विमान हैं ॥ ६५ ॥ आरण और अच्युत युगलमें एक सौ उनसठ (१५९) तथा अधो ग्रैवेयकमें एक सौ तेईस (१२३) प्रकीर्णकरहित १. निष्प्रकीर्णकाः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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