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लोकविभागः
[ १०.५४
कल्पेषु पञ्चमो भागो राशेः संख्येयविस्तृतः । चतुः पञ्चमभागाः स्युरसंख्येयकविस्तृताः ॥५४ शतं चाष्टावसंख्येयास्त्रयः संख्ये यविस्तृताः । अगण्या नवतिर्व्यका' गण्याश्चाष्टादशोदिताः ॥५५ । १०८ । ८९ । १८ ।
२
चतुःसप्ततिरूर्ध्वं च असंख्येया उदाहृताः । वश सप्त च संख्येया अष्टौ चासंख्यविस्तृताः ॥५६
। ७४ । १७ । ८
संख्येयमनुविक्ष्वेकं तथैवानुत्तरेष्वपि । असंख्येयास्तु चत्वार इति सर्वज्ञदर्शनम् ॥५७
। १ । १ ।
शून्याष्टकं त्रिकं चैव नव च स्युः पुनर्नव । षडेकं च क्रमाद् ज्ञेया विमाना गणितागताः ॥५८
। १६९९३८० ।
त्रयश्चत्वारि षट् सप्त नव सप्त षडेव च । असंख्यविस्तृता ज्ञेया विमाना सर्व एव ते ॥५९ । ६७९७६४३ ।
शतमष्ट सहस्राणि विंशतिः सप्तसंयुता । सर्वाष्यापि विमानानि स्थितान्यावलिकासु वै ॥ ६०
। ८१२७ ।
चत्वारि च सहस्राणि चत्वार्येव शतानि च । नवतिश्चापि पञ्चाग्र । आदावावलिकास्थिताः ॥ ६१
। ४४९५ ।
५६०. ।। ५३ ।। कल्पोंमें अपनी अपनी विमानराशिके पांचवें भाग प्रमाण संख्यात योजन विस्तारवाले तथा चार पांचवें भाग ( ) प्रमाण असंख्यात योजन विस्तारवाले हैं ।। ५४ ।। ग्रैवेयकों में से अधस्तन ग्रैवेयकमें असंख्यात विस्तारवाले विमान एक सौ आठ (१०८) तथा संख्यात विस्तारवाले तीन (३) हैं, मध्यम ग्रैवेयकों में एक कम नब्बे (८९) विमान असंख्यात विस्तारवाले तथा अठारह ( १८ ) विमान संख्यात विस्तारवाले हैं, उपरिम ग्रैवेयकमें चौहत्तर (७४) असंख्यात विस्तारवाले तथा सत्तरह ( १७ ) संख्यात विस्तारवाले विमान कहे गये हैं । अनुदिशोंमें आठ (८) असंख्यात विस्तारवाले विमान तथा एक (१) संख्यात विस्तारवाला है । उसी प्रकारसे अनुत्तरोंमें भी संख्यात विस्तारवाला एक (१) तथा असंख्यात विस्तारवाले चार (४) विमान हैं, यह सर्वज्ञके द्वारा देखा गया है ।। ५५-५७ ।। सब विमानोंमें अंकक्रमसे शून्य, आठ, तीन, नो, नौ, छह और एक ( १६९९३८० ) इतने विमान संख्यात विस्तारवाले तथा तीन, चार, छह सात, नो, सात और छह (६७९७६४३) इतने विमान असंख्यात विस्तारवाले हैं ।। ५८-५९ ।।
श्रेणियों में स्थित ( श्रेणीबद्ध ) सब विमान आठ हजार एक सौ सत्ताईस ( ८१२७ ) हैं ।। ६० ।। प्रथम कल्पमें श्रेणीबद्ध विमान चार हजार चार सौ पंचानबे (४४९५ ) हैं ||६१ ॥ विशेषार्थ -- प्रथम कल्पयुगल में इकतीस इन्द्रक विमान हैं। इनमेंसे प्रथम ऋतु इन्द्रककी चारों दिशाओंमेंसे प्रत्येकमें ६३-६३ श्रेणीबद्ध विमान स्थित हैं। आगे दूसरे व तीसरे आदि इन्द्रकोंमें वे उत्तरोत्तर एक एकसे कम (६२, ६१ आदि) होते गये हैं । इस क्रमसे सौधर्म कल्पमें समस्त (३१) इन्द्रकोंके आश्रित सब श्रेणीबद्ध विमान कितने हैं, यह जाननेके लिये निम्न गणित सूत्रका उपयोग किया जाता है- एक कम गच्छको आधा करके उसे चयसे गुणित
१ आप वेंका। २ प असंख्येय उदा० ।
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