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-१०.३५] दशमो विभागः
[ १७७ उडुणामे पत्तेक्कं सेटिगदा चउदिसासु बासट्ठी। एक्कक्कूणा सेसे पडिदिसमाइच्चपरियंत' ॥४ उडुणामे सेढिगदा एक्केक्कदिसाए होंति तेसट्ठी। एक्केक्कूणा सेसे जाव यसवत्यसिद्धि ति ॥५ सेढीबद्धे सव्वे समवट्टा विविहदिव्वरयणमया । उल्लसिदधयवडाया णिरुवमरूवा विराजंति ॥६ ऋतुश्चन्द्रोऽथ विमलो वल्गुवीरमथारुणम् । नन्दनं नलिनं चैव काञ्चनं रोहितं तथा ॥२५ चञ्चं च मरुतं भूयः ऋद्धीशं च त्रयोदशम् । वैडूर्य रुचकं चापि रुचिराङ्केच नामतः ॥२६ स्फटिक तपनीयं च मेधमभ्रमतः परम् । हारिद्रं पद्मसंजं च लोहिताख्यं सवज्रकम् ॥२७ नन्द्यावर्त विमानं च प्रभाकरमतः परम् । पृष्ठकं गजमित्रे च प्रभा चाद्योऽस्तु कल्पयोः ॥२८ अञ्जनं वनमालं च नागं गरुडमित्यपि । लांगलं बलभद्रं च चक्रं च परयोरपि ॥२९. अरिष्टं देवसमिति ब्रह्म ब्रह्मोत्तराह्वयम् । ब्रह्मलोके च चत्वारि इन्द्र काणीति लक्षयेत् ॥३० नाम्ना तु ब्रह्महृदयं लान्तवं चेति तद्वयम्" । लान्तवे शुक्रसंशं च महाशुक्रेऽभिधीयते ॥३१ शताराख्यं सहस्रारे आनतं प्राणतं तथा । पुष्पकं शातकारं च आरणं चाच्युतं च षट् ॥३२ आनतादिचतुष्के च ग्रेवेयेषु सुदर्शनम् । अमोघं सुप्रबुद्धं च अधस्ताणितं त्रयम् ॥३३ यशोधरं सुभद्रं च सुविशालं च मध्यमे । सुमनः सौमनस्यं च ऊर्वे प्रीतिकरं च तत् ॥३४ अनुदिग्मध्यमादित्यं मध्यं चानुत्तरेष्विति । सर्वार्थसिद्धिसंशं च सर्वान्त्यप्रतरेन्द्रकम् ॥३५
ऋतु नामक इन्द्रक विमानकी चारों दिशाओंमेंसे प्रत्येक दिशामें बासठ श्रेणीबद्ध विमान स्थित हैं । आगे आदित्य इन्द्रक पर्यन्त शेष इन्द्रकोंकी पूर्वादिक दिशाओंमें स्थित वे श्रेणीबद्ध विमान उत्तरोत्तर एक एक कम होते गये हैं ॥४॥ ऋतु इन्द्रक विमानकी एक एक दिशामें तिरेसठ श्रेणीबद्ध विमान हैं। आगे सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त शेष इन्द्रकोंमें वे उत्तरोत्तर एक एक कम हैं [ पाठान्तर]॥५॥ गोल, अनेक प्रकारके दिव्य रत्नोंसे निर्मित और ध्वजा-पताओंसे सुशोभित वे सब श्रेणीबद्ध विमान अनुपम स्वरूपको धारण करते हुए सुशोभित होते हैं ॥ ६ ॥
___ ऋतु, चन्द्र, विमल, वल्गु, वीर, अरुण नन्दन, नलिन, कांचन, रोहित, चंच, मरुत, तेरहवां ऋद्धीश, वैडूर्य, रुचक, रुचिर, अंक, स्फटिक, तपनीय, मेघ, अभ्र, हारिद्र, पद्म, लोहित, वज्र, नन्द्यावर्त, प्रभाकर, पृष्ठक, गज, मित्र और प्रभा ये इकतीस इन्द्रक प्रथम दो कल्पों (सौधर्म-ऐशान) में अवस्थित हैं ॥ २५-२८॥ अंजन, वनमाल, नाग, गरुड, लांगल, बलभद्र और चक्र ये सात इन्द्रक विमान आगेके दो कल्पों (सनत्कुमार-माहेन्द्र) में अवस्थित हैं ।।२९।। अरिष्ट, देवसमिति, ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर नामक चार इन्द्रक विमान ब्रह्म कल्पमें जानना चाहिये ॥ ३० ॥ ब्रह्महृदय और लान्तव नामक दो इन्द्रक विमान लान्तव कल्पमें हैं। महाशुक्र कल्पमें एक शुक्र नामका विमान कहा जाता है ।।३१॥ शतार नामका एक इन्द्रक विमान सहस्रार कल्पमें तथा आनत, प्राणत, पुष्पक, शातकार, आरण और अच्युत ये छह इन्द्रक विमान आनत आदि चार कल्पोंमें हैं। ग्रेवेयकोंमें सुदर्शन, अमोघ और सुप्रबुद्ध ये तीन इन्द्रक विमान नीचे; यशोधर, सुमद्र और सुविशाल ये तीन मध्यमें; तथा सुमनस्, सौमनस्य और प्रीतिकर ये तीन इन्द्रक विमान ऊपर स्थित हैं ॥ ३२-३४॥ अनुदिशोंके मध्यमें आदित्य तथा अनुत्तरोंके मध्यमें सर्वार्थसिद्धि नामका सबमें अन्तिम इन्द्रक पटल है ॥ ३५ ॥
१ मा प माइंच' । २
गया। ३त्यि । ४ आ प पृष्टकं १ षष्टकं । ५ मा पदयं ।
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