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________________ १७६ ] लोकविभागः [१०.१९सुक्कमहासुक्कगदो सदरसहस्सारगो दुतत्तो दु।आणदपाणदआरणअच्चुदगा होंति कप्पा हु॥२ मज्झिमचउजुगलाणं पुन्वावरजुम्मगेसु सेसेसु । सव्वत्थ होंति इंदा इदि बारस' होंति कप्पा हु॥ प्रैवेयकानि च त्रीणि अधोमध्योतमानि तु । एकैकं च त्रिधा भिन्नमूर्ध्वमध्याधराख्यया ॥१९ अनुदिग्नामकान्यूज़ ततोऽनुत्तरकाणि च । ऊर्ध्वलोकविभागोऽयमीषत्प्राग्भारकान्तिमः ॥२० विमानानां च लक्षाणि चतुरशीतिर्भवन्ति च । सप्तनवतिसहस्राणि त्रयोविंशतिरत्र च ॥२१ । ८४९७०२३। इन्द्रकाणि त्रिषष्टिः स्युरूज़पडक्त्या स्थितानि च । पटलानां च मध्यानि त्रिषष्टिः पटलान्यतः ॥ । ६३ । ६३। त्रिंशदेकाधिका सप्तचतुद्वर्येककषत्रिकम् । त्रिकत्रिकंककानि स्युरूध्वंलोकेन्द्रकाणि तु ॥२३ ।३१।७।४।२।१।१।६।३।३।३।१।१। ऋतुरादीन्द्रकं प्रोक्तं त्रिषष्टिस्तस्य दिक्षु च । श्रेणीबद्धविमानानि एककोनानि चोत्तरम् ॥२४ उक्तं च त्रयम् [ति. प. ८, ८३-८४,१०९] शतार-सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत ये कल्प हैं। इनमें मध्यम चार युगलोंके पूर्व दो युगलोंमें अर्थात् ब्रह्म और लान्तवमें तथा अपर युगलों अर्थात् महाशुक्र और सहस्रारमें एक एक इन्द्र और शेष चार युगलों में सर्वत्र एक एक इन्द्र है । इस प्रकार बारह कल्प होते हैं ॥ १-३ ॥ ग्रैवेयक तीन हैं- अधो ग्रैवेयक, मध्यम अवेयक और उत्तम ग्रेवेयक । इनमेंसे प्रत्येक भी ऊर्ध्व, मध्य और अधरके नामसे तीन प्रकारका है ।। १९ ॥ इनके ऊपर अनुदिश नामक विमान और उनके भी ऊपर अनुत्तर विमान हैं । अन्तमें ईषत्प्रारभार पृथिवी है । यह ऊर्ध्व लोकका विभाग है ।। २० ।। यहाँ सब विमान चौरासी लाख संतानबै हजार तेईस हैं - ८४९७०२३ ॥ २१ ॥ पटल तिरेसठ (६३) हैं जो ऊर्ध पंक्तिके क्रमसे स्थित हैं । इन पटलोंके मध्यमें तिरेसठ (६३) इन्द्रक विमान स्थित हैं॥ २२ ॥ एक अधिक तीस अर्थात् इकतीस, सात, चार, दो, एक, एक, छह, तीन, तीन, तीन, एक और एक ; इस प्रकार क्रमसे ऊर्ध्व लोकगत उन बारह स्थानोंमें इतने इन्द्रक स्थित हैं-- ३१, ७, ४, २, १, १, ६, ३, ३, ३, १, १ ॥ २३ ॥ उनमें जो प्रथम ऋतु इन्द्रक कहा गया है उसकी पूर्वादिक दिशाओंमें तिरेसठ तिरेसठ (६३-६३) श्रेणीबद्ध विमान स्थित हैं। इसके आगे वे उत्तरोत्तर एक एक कम (६२, ६१ आदि) हैं ॥२४॥ इस सम्बन्धमें तीन गाथायें भी कही गई हैं-- १ब बारह। २५ कांतिभिः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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