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-१०.१८] दशमी विभागः
[१७५ विशति तु सहस्राणां हस्तांस्तेभ्यो व्यतीत्य च । पञ्चाशतं सहस्राणि जीवन्त्यन्यास्तु' देवताः॥११
।२००००। ५००००। तावत्तावद् व्यतीत्यान्याः षष्टिसप्तत्यशीति च । चतुरशीति सहस्राणि जीवन्त्यः सन्ति देवताः॥
। ६००००। ७००००।[८००००।] ८४००००। पल्याष्टमायुषस्ताभ्यः पल्यपादायुषस्ततः । पल्योपमदलायुष्कास्ताभ्य ऊर्ध्वमतीत्य च ॥१३
ज्योतिर्देवा: परे तेभ्यः पल्यं जीवन्ति साधिकम् । दशवर्षसहस्राग्रं पल्यं जीवन्ति भास्कराः ॥१४
।प१ व १०००० । नियुतेनाधिक" पल्यं चन्द्रा जीवन्ति तत्परे । अयमायुःक्रमो वेद्यो देवस्थानक्रमोऽपि च ॥१५
।प१ व १००००० । द्विधा वैमानिका देवा कल्पातीताश्च कल्पजाः । कल्पा द्वादश तत्र स्युः कल्पातीतास्ततः परे ॥१६ सौधर्मः प्रथमः कल्प ऐशानश्च ततः परः । सनत्कुमारमाहेन्द्रौ ब्रह्मलोकोऽय लान्तवः ॥१७ महाशुक्रः सहस्रार आनतः प्राणतोऽपि च । आरणश्चाच्युतश्चेति एते कल्पा उदाहृताः ॥१८
उक्तं च त्रयम् [त्रि. सा. ४५२-५४] -- सोहम्मीसाणसणक्कुमारमाहिंदगा हु कप्पा हु । बम्हब्बम्हुत्तरगो लांतवकापिट्ठगो छट्ठो ॥१
१००००, आयु ४०००० वर्ष ॥ १०॥ उनसे बीस हजार हाथ ऊपर जाकर पचास हजार वर्ष तक जीवित रहनेवाले अन्य (उत्पन्न ) देव स्थित है- उपर हाथ २००००, आयु ५००००, वर्ष ॥११॥ उतने उतने हाथ ऊपर जाकर क्रमसे साठ हजार, सत्तर हजार, अस्सी हजार और चौरासी हजार वर्ष तक जीवित रहनेवाले अन्य (अनुत्पन्न, प्रमाणक, गन्ध, महागन्ध) देव रहते हैं- आयु ६००००, ७००००, ८००००, ८४००० वर्ष ।। १२॥ उनके ऊपर [उतने हाथ ] जाकर पल्यके आठवें भाग प्रमाण आयुवाले, पल्यके चतुर्थ भाग प्रमाण आयुवाले और आधा पल्य प्रमाण आयुवाले (भुजग, प्रीतिक और आकाशोत्पन्न) देव स्थित हैं- आयु पल्य, पल्य १, पल्य ३ ॥१३॥
उनके ऊपर ज्योतिषी देव रहते हैं जो कुछ अधिक पल्य प्रमाण काल तक जीवित रहते हैं। सूर्य ज्योतिषी देव दस हजार वर्षसे अधिक एक पल्य प्रमाण काल तक जीवित रहते हैं- आयु १ पल्य और १०००० वर्ष ।। १४ ।। उनके ऊपर चन्द्र एक लाख वर्षसे अधिक एक पल्य काल तक जीवित रहते हैं। इस प्रकार यह आयुका क्रम और देवोंके स्थानका क्रम जानना चाहिये - आयु १ पल्य और १००००० वर्ष ।। १५ ।।
वैमानिक देव दो प्रकार के हैं- कल्पोत्पन्न और कल्पातीत । उनमें कल्प बारह हैं। उनके आगे कल्पातीत हैं ।। १६ ॥ प्रथम कल्प सौधर्म, तत्पश्चात् दूसरा ऐशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तव, महाशुक्र, सहवार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत; ये बारह कल्प कहे गये हैं ॥ १७-१८ । इस सम्बधमें ये तीन गाथाय भी कही गई हैं--
सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर, छठा लान्तव-कापिष्ठ, शुक्र-महाशुक्र
१ प जीवन्त्यान्यास्तु । २ ५ श्लोकस्यास्य पूर्वार्द्धभागो नास्ति । ३ आ व्यतीतान्याः । ४ प 'युष्कस्ताभ्य । ५ ब 'नादिकं । ६ ब क्रमा। ७ आ प बम्हं बम्हु' बबम्हां बम्ह। (त्रि सा बम्हब्बम्हु)।
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