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________________ [ दशमो विभागः ] वर्धमान महावीरं मू|' नत्वा कृताञ्जलिः । क्रमवृद्धोध्र्वसाखाढय मूर्ध्वलोकमितो वे ॥१ ऊर्ध्व भावनदेवेश्यो देवा वानान्तरा स्थिताः । नीचोपपातिकास्तेभ्यस्तेभ्यो दिग्वासिनः सुराः ॥२ ततश्चान्तरवासाख्या वसन्तोऽपि निरन्तरम् । कूष्माण्डाश्च परं तेभ्यस्तत उत्पन्नकाः सुराः ॥३ अनुत्पन्नकनामानस्तत ऊर्ध्वं प्रमाणका: । गन्धिकाश्च महागन्धा भुजगा: प्रीतिका अपि ॥४ आकाशोत्पन्नका नाम्ना ततो ज्योतिषिका अपि । कल्पोद्भवाः परे तेभ्यस्तेभ्यो वैमानिकाः परे ॥५ आद्या प्रैवेयकास्तेष्वनुद्दिशानुत्तराः सुराः । द्वितीया तत ऊर्खास्ते सिद्धा ऊर्ध्वं ततः स्थिताः ॥६ हस्तमात्रं भुवो गत्वा देवा नीचोपपातिकाः । दशवर्षसहस्राणि जीवन्तस्तत्र भाषिताः ॥७ दशहस्तसहस्राणि तेभ्य ऊर्ध्वमतीत्य च । विशत्यब्दसहस्राणि जीवन्त्यो नीचदेवता: ॥८ ।२००००। दशहस्तसहस्राणि तेभ्यो हयूलमतीत्य च । त्रिंशदन्दसहस्राणि जीवन्त्यो नोचदेवताः ॥९ ।३००००। दशहस्तसहस्राणि तेभ्य ऊर्ध्वमतीत्य च । चत्वारिंशत्सहस्राणि जीवन्त्यो नीचदेवताः ॥१० ।१००००। ४००००। मैं हाथ जोड़कर श्रीवर्धमान महावीर अन्तिम तीर्थंकरको शिरसे नमस्कार करता हुआ यहां क्रमसे वृद्धिंगत उपरिम शाखाओंसे (?) व्याप्त ऊर्ध्व लोकका वर्णन करता हूं ॥१॥ भवनवासी देवोंसे ऊपर वानव्यन्तर देव, उनसे ऊपर नीचोपपातिक देव, और उनसे ऊपर दिग्वासी देव स्थित हैं । उनके ऊपर निरन्तर अन्तरवासी देव निवास करते हैं, उनसे ऊपर कूष्माण्ड देव, उनसे ऊपर उत्पन्नक देव, उनसे ऊपर अनुत्पन्नक नामक देव, उनसे ऊपर प्रमाणक देव, उनसे ऊपर गन्धिक देव, उनसे ऊपर महागन्ध, उनसे ऊपर भुजग, उनसे ऊपर प्रीतिक, उनसे ऊपर आकाशोत्पत्रक नामक देव, उनसे ऊपर ज्योतिषी देव, उनसे ऊपर कल्पवासी देव, और उनसे ऊपर वैमानिक देव स्थित हैं ॥२-५॥ वैमानिकों (कल्पातीतों) में प्रथम ग्रेवेयक देव और दूसरे अनुद्दिश एवं अनुत्तर देव हैं जो उनके ऊपर स्थित हैं। उनके ऊपर वे सिद्ध परमात्मा स्थित हैं।।६।। [चित्रा] पृथिवीसे एक हाथ ऊपर जाकर नीचोपपातिक देव स्थित हैं । उनकी आयु दस हजार वर्ष प्रमाण कही गई है- ऊंचाई १ हाथ, आयु १०००० वर्ष ।। ७ ।। उनके ऊपर दस हजार हाथ जाकर बीस हजार वर्ष प्रमाण आयुवाले नीच देव (दिग्वासी) रहते हैं - आयु २०००० वर्ष ॥ ८ ॥ उनके ऊपर दस हजार हाथ जाकर तीस हजार वर्ष तक जीवित रहनेवाले नीच देव (अन्तर निवासी) रहते हैं- आयु ३०००० वर्ष ॥ ९॥ उनके ऊपर दस हजार हाथ जाकर चालीस हजार वर्ष तक जीवित रहनेवाले नीच देव (कुष्माण्ड) स्थित हैं- ऊपर हाथ १ब मूर्धा । २ व साख्याढ्य । ३ प जीवंस्तत्र । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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