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________________ १७२] लोकविभागः [ ९.७२ सार्धद्विषष्टिर्द्वारस्य उच्छ्रयोऽर्धा तु रुन्द्रता । पञ्चसप्ततिमुद्विद्धः प्रासादोऽत्र च भाषितः ॥ ७२ ६२ । ̧ । ३१ । १ । ७५ । द्वादशार्धं च दीर्घा तु षट् तुर्य चाथ विस्तृता । योजनानि नवोद्विद्धा सुधर्मा गाधगोरुता ॥ ७३ १२ । ३ । ६ । । ९ । १ । द्वारं योजनविस्तारं द्विगुणोच्छ्रयमिष्यते । एवं मानानि सर्वेषु नगरेषु विभावयेत् ॥ ७४ ।१।२। हरिताला द्वीपे तथा हिंगुलिकेऽपि च । मनःशिलाह्वाञ्जनयोः सुवर्ण रजतेऽपि च ॥ ७५ वज्रधातौ च वत्रे च इन्द्राणां नगराणि तु । नगराण्यपि शेषाणामनेकद्वीपवाधिषु ॥ ७६ भवादित्रयाणां तु जघन्या ते [ते]जसी मता । कृष्णादित्रिकलेश्याश्च तेषां सन्तीति भाषिताः ॥ ७७ अम्बा नाम्ना कराला च सुलसा च सुदर्शना । पिशाचानां निकायेषु गणिकानां महत्तराः ॥ ७८ भूतकान्ता च भूता च भूतदत्ता महाभुजा । एता भूतनिकायेषु गणिकानां महत्तराः ॥ ७९ सुघोषा विमला चैव सुस्वरा चाप्यनिन्दिता । गन्धर्वाणां निकायेषु गणिकानां महत्तराः ॥ ८० मधुरा मधुरालापा सुस्वरा मृदुभाषिणी । किंनराणां भवन्त्येता गणिकानां महत्तराः ॥ ८१ भोगा भोगवती चैका भुजगा भुजगप्रिया । महोरगनिकायेषु गणिकानां महत्तराः ॥ ८२ तथा अग्रभाग में अढ़ाई (२३) योजन प्रमाण है ।। ७१ ।। द्वारकी ऊंचाई साढ़े बासठ (६२३) योजन तथा विस्तार उससे आधा ( ३१३ ) है । यहां पचहत्तर (७५) योजन ऊंचा प्रासाद कहा गया है ।। ७२ ।। सुधर्मा सभाकी लंबाई साढ़े बारह (१२३ ) योजन, विस्तार सवा छह (६) योजन, ऊंचाई नौ (९) योजन और अवगाह एक (१) योजन मात्र है ।। ७३ ।। उसका द्वार एक (१) योजन विस्तृत और दो ( २ ) योजन ऊंचा है । इसी प्रकारसे उक्त विस्तारादिका प्रमाण सब ही नगरों में जानना चाहिये ।। ७४ ।। उक्त व्यन्तर इन्द्रोंके नगर हरिताल नामक द्वीप में, हिंगुलिक द्वीपमें, मनःशिला नामक द्वीपमें, अंजन द्वीप में, सुवर्णद्वीपमें, रजतद्वीपमें, वज्रधातु द्वीपमें और वज्रद्वीप में इस प्रकार इन आठ द्वीपोंमें स्थित हैं। शेष व्यन्तरोंके नगर अनेक द्वीप समुद्रों में स्थित हैं ।। ७५-७६ ।। भवनवासी आदि तीन प्रकारके देवोंमें जघन्य तेजोलेश्या मानी गई है। उनके कृष्णादि तीन लेश्यायें भी होती हैं, ऐसा कहा गया है ।। ७७ ।। अम्बा, कराला, सुलसा और सुदर्शना ये पिचाच देवों में गणिकामहत्तरोंके नाम हैं ॥७८॥ भूतकान्ता, भूता भूतदत्ता और महाभुजा ये भूतजातिके व्यन्तरोंमें गणिकामहत्तरोंके नाम हैं ।। ७९ ।। सुघोषा, विमला, सुस्वरा और अनिन्दिता ये गन्धर्व जातिके व्यन्तरोंमें गणिकामहत्तरोंके नाम हैं ॥ ८० ॥ मधुरा, मधुरालापा, सुस्वरा और मृदुभाषिणी ये किंनर जातिके व्यन्तरोंमें गणिकाओंके महत्तर होते हैं ।। ८१ ।। भोगा, भोगवती, भुजगा और भुजगप्रिया ये महोरग जातिके १ आप 'द्विषष्टि' । २ ब गादगो° । ३ आ प 'सुघोषा -' इत्यादिश्लोकत्रयं नास्ति | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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