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-९.७१] नवमो विभागः
[१७१ विशतिश्च सहस्राणि अष्टौ चाद्या पृथक् पृथक् । कक्षास्तु द्विगुणास्ताश्च द्वितीयादिषु कीर्तिताः॥
।२८०००। एकानीकाः । ३५५६०००। शून्यत्रिकात्परं द्वे च नवाष्टौ द्विकृतिद्विकम् । व्यन्तराणां निकायेषु सर्वानीका उदाहताः ॥६६
।२४८९२०००। काला' कालप्रभा चैव कालकान्ता च दक्षिणा । कालावर्ताऽपरा नाम्नाकालमध्येति चोत्तरा॥६७ काला मध्ये चतस्रोऽन्याः पूर्वाद्याशाचतुष्टये । एवं सर्वेन्द्रसंज्ञाभिः पञ्च स्युनगराणि हि ॥ ६८ राजधान्यः पिशाचानां पञ्च प्रोक्तास्तु नामतः । जम्बूद्वीपप्रमाणाश्च चतुर्वनविभूषिताः ।। ६९ योजनानां सहस्र द्वे नगरेभ्यो वनानि हि । नियुतायामयुक्तानि तदधं विस्तृतानि च ॥ ७०
।१०००००। ५००००। सप्तत्रिशतमधं च प्राकारस्तत्र चोच्छितः । द्वादशार्धं च मूलोरु' सार्धे चानविस्तृतः॥७१
।३७ । ३ । १२।३। ।
इनमेंसे प्रथम कक्षामें पृथक् पृथक् अट्ठाईस हजार (२८०००) देव होते हैं। आगे द्वितीय आदि कक्षाओंमें वे उत्तरोत्तर दूने दूने बतलाये गये हैं ।। ६५ ॥
विशेषार्थ- जितना गच्छका प्रमाण हो उतने स्थानमें २ का अंक रखकर परस्पर गुणा करनेसे जो प्राप्त हो उसमेंसे एक कम करके शेषमें एक कम गुणकार (२-१=१)का भाग दे। इस प्रकारसे जो लब्ध हो उससे मुखको गुणित करनेपर संकलित घनका प्रमाण प्राप्त होता है। तदनुसार यहां गच्छका प्रमाण ७ और मुखका प्रमाण २८००० है । अत एव उक्त नियमके अनुसार यहां सात कक्षाओंका समस्त घन निम्न प्रकारसे प्राप्त होता है - २८००० [{(२४२४२४२ x२x२x२)-१}:- (२-१)] =३५५६०००; एक अनीककी ७ कक्षाओंका प्रमाण । इसे ७ से गुणित करनेपर समस्त सप्तानीकका प्रमाण होता है -३५५६०००४७=२४८९२०००।
व्यन्तरोंके निकायोंमें सब अनीकोंकी संख्या तीन शून्य, तत्पश्चात् दो, नौ, आठ, दोका वर्ग अर्थात् चार और दो, इन अंकोंके प्रमाण कही गई है-२४८९२००० ॥ ६६ ॥ काला, काल. प्रभा, कालकान्ता, कालावर्ता और कालमध्या [ये पांच नगर काल नामक पिशाचेन्द्र के होते हैं।। इनमेंसे काला नगरी मध्यमें तथा अन्य शेष चार नगरियां पूर्वादिक चार दिशाओंमें हैं। इसी प्रकार सब इन्द्रोंके अपने नामों के अनुसार पांच पांच नगर होते हैं ।। ६७-६८।। यहां पिशाचोंकी पांच राजधानियों के नाम निर्दिष्ट किये हैं। इनके विस्तारादिका प्रमाण द्वितीय जम्बूद्वीपमें स्थित व्यन्तरनगरियोंके समान है। उक्त राजधानियां चार वनोंसे सुशोभित हैं ॥ ६९ ॥ ये वन नगरोंसे दो हजार (२०००) योजन जाकर स्थित हैं। वनोंकी लंबाई एक लाख (१०००००) योजन और विस्तार उससे आधा (५०००० यो.) है ।। ७०।। उन नगरियोंका जो प्राकार है। वह साढ़े सैतीस (३७३) योजन ऊंचा है। उसका विस्तार मूलमें साढ़े बारह (१२३) योजन
१५ व काल । २५ कालाकांता । ३ आ प नियुतानामयुक्तानि प नियुतानायुक्त्वानि । ४ आ प द्वे ब "द्वि
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