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- ८.४० ]
अष्टमो विभाग:
[ १४९
त्रिशच्च पञ्चवर्गः स्युः पञ्चादश दशैव च । त्रीणि पञ्चोनमेकं च लक्षं पञ्च च केवलाः ॥ ३१
३०००००० । २५००००० । १५००००० । १०००००० । ३००००० । ९९९९५ । ५। कमात्सतावनीतरका भागस्तेषां च पञ्चमः । भवेत्सं व्येयविस्तारः शेषाश्चासंख्यविस्तृताः ॥ ३२ चतुःशून्याष्टषट्कैकं ' नरका: संख्येयविस्तृताः । चतुर्गगनद्विकं सप्त षट्कं चासंख्यविस्तृताः ॥३३
१६८०००० । ६७२०००० ।
द्वे सहस्त्रे शते द्वे च चत्वारिंशत्रवोत्तराः । दिग्गता [ताः] प्रथमायां स्युर्वक्ष्यन्तेऽतो विदिग्गताः ॥ ३४ द्वे सहत्रे शतं चैकमशीतिश्चतुरुत्तरा । उभये पिण्डिताः सन्तो भवन्त्यावलिकास्थिताः ॥ ३५ सप्त षट् पञ्च पञ्चैव नव चैव पुनर्नव । द्वे च स्थानक्रमाद् ग्राह्या घर्मापुष्पप्रकीर्णकाः ॥ ३६ पञ्चसप्ततियुक्तानि त्रयोदशशतानि हि । दिवन्यासु च विंशानि त्रयोदशशतानि हि ॥ ३७ पञ्च शून्यं त्रयं सप्त नव चत्वारि च द्विकम् । पुष्पप्रकीर्णका ज्ञेया वंशायां नरका इमे ॥ ३८ शतानि सप्तषष्टिश्च पञ्चयुक्ता दिका [गा]श्रिताः । विदिग्गतास्तु विंशानि सप्तैव स्युः शतानि हि ॥ पञ्चकं पञ्च चाष्टौ च नव चत्वारि रूपकम् । पुष्पप्रकीर्णकाः प्रोक्ताः शैलायां नरका इमे ॥ ४०
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उपर्युक्त सात पृथिवियोंमें क्रमसे तीस लाख ( ३००००००), पांचका वर्ग अर्थात् पच्चीस लाख (२५०००००), पन्द्रह लाख ( १५०००००), दस लाख (१०००००० ), तीन लाख (३०००००) पांच कम एक लाख ( ९९९९५) और केवल पांच (५) ही नारक बिल अवस्थित हैं । इनमेंसे पांचवें भाग प्रमाण (६०००००, ५०००००, ३०००००, २०००००, ६००००, १९९९९, १ ) नारक बिलोंका विस्तार संख्यात योजन और शेष (X) का असंख्यात योजन प्रमाण है ।। ३१-३२ ।। अंकक्रमसे चार शून्य, आठ, छह और एक ( १६८०००० ) इतने नारक बिलोंका विस्तार संख्यात योजन; तथा चार शून्य, दो, सात और छह ( ६७२०००० ) इतने नारक बिलोंका बिस्तार असंख्यात योजन है ।। ३३ ।।
प्रथम पृथिवीमें दो हजार दो सौ उनंचास ( २२४९ ) बिल बिलोंका प्रमाण कहा जाता है- दो हजार एक सौ चौरासी हैं । इन दोनों प्रकारके बिलोंकी जितनी समस्त संख्या है उतने (२२४९ + २१८४४४३३) प्रथम पृथिवी में श्रेणीबद्ध बिल स्थित हैं ।। ३४-३५ ।। घर्मा पृथिवी में अंकक्रमसे सात, छह, पांच, पांच, नौ, फिर नौ और दो इतने ( २९९५५६७ ) अर्थात् उनतीस लाख पंचानबे हजार पांच सौ सड़सठ पुष्पप्रकीर्णक बिल जानना जाहिये ।। ३६ ।।
वंशा (द्वितीय) पृथिवीमें दिशागत श्रेणीबद्ध बिल तेरह सौ पचत्तर (१३७५) और विदिशागत तेरह सौ बीस ( १३२० ) हैं । यहां पुष्पप्रकीर्णक बिल अंकक्रमसे पांच, शून्य, तीन, सात, नौ, चार और दो (२४९७३०५ ) इतने जानना चाहिये ।। ३७-३८।। शैला पृथिवीमें दिशागत श्रेणीबद्ध बिल सात सौ पैंसठ (७६५) और विदिशागत सात सौ बीस ( ७२० ) हैं । पुष्पप्रकीर्णक बिल वहां अंकक्रमसे पांच, एक, पांच, आठ, नौ, चार और एक ( १४९८५१५ ) इतने हैं ।। ३९-४०॥
१ आप शूत्याष्टकैकैकं । २ आप विशानी ।
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दिशागत हैं | आगे विदिशा(२१८४) बिल विदिशागत
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