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________________ १४८] लोकविभागः [८.२२प्रतराणां च मध्ये स्युरिन्द्रका इति नामतः । निरया घोरदुःखाढया नामभिस्तान्निबोधितः ॥ २२ सीमन्तकोऽथ निरयो रौरवो भ्रान्त एव च । उभ्रान्तोऽव्यय संभ्रान्तस्त्वसंभ्रान्तश्च सप्तमः ॥२३ विभ्रान्तस्त्रस्तनामा च त्रसितो वक्रान्त एव च । अवक्रान्तश्च विक्रान्तः प्रथमायां क्षिताविमे ॥२४ ततकस्तनकश्चैव वनंको मनकस्तथा । खटा च खटिको जिह्वा जिबिका लोलिका तथा ॥ २५ लोलवत्सा च दशमी स्तनलोलेति पश्चिमा । द्वितीयस्यां क्षितावेते इन्द्रका निरयाः खराः॥ २६ ततीयस्यां भवेत्तप्तस्तपितस्तपनः पुनः । तापनोऽय निदायश्च उज्ज्वल: प्रज्वलोऽपि च ॥ २७ ततः संज्वलितो' घोरः संप्रज्वलित एव च । विज्ञेया इन्द्रका एते नव प्रतरनाभयः ॥ २८ आरा मारा च तारा च चर्वाथ तमकीति च । घाटा घट च सप्तैते चतुर्थ्यामवनौ स्थिताः ॥ २९ तमका भ्रमका भूयो झषकान्द्रा[न्धा]तिमिश्रका । हिमवादललल्लक्यः अप्रतिष्ठान इत्यपि ॥ ३० तृतीय पृथिवीमें - { ( २८०००-२०००) - (३४९)} : (९-१) = ३२४९६४ =(३२५०-१) योजन चतुर्थ पृथिवीमें – { ( २४०००-२०००) - (१४७) } : (७-१) == ३६६५४४ =(३६६६३२-३१) यो. पांचवीं पृथिवीमें - {(२००००-२०००) - (३४५) } : ( ५-१ )=४४९९३९ =(४५००-१६) योजन । छठी पृथिवीमें- { (१६०००-२०००) - (४३) } : (३-१) =६९९८५१ =(७०००-२६) योजन। सातवीं पृथिवीमें- १ ही पटलके होनेसे अन्तरकी सम्भावना नहीं है । • पटलोंके बीच में इन्द्रक नामके जो नारक बिल हैं वे इतने भयानक दुखसे व्याप्त हैं कि उनका नाम भी नहीं लिया जा सकता है ।। २२ ॥ सीमन्तक, निरय, रौरव, भ्रान्त, उद्भ्रान्त, सम्भ्रान्त, सातवां असम्भ्रान्त, विभ्रान्त, वस्त, त्रसित, वक्रान्त, अवक्रान्त और विक्रान्त; ये तेरह इन्द्रेक बिल प्रथम पृथिवीमें स्थित हैं ॥ २३-२४ ।। ततक, तनक, वनक, मनक, खटा, खटिक, जिह्वा, जिबिका, लोलिका, दसवां लोल वत्सा और अन्तिम (ग्यारहवां) स्तनलोला ये तीक्ष्ण ग्यारह इन्द्रक बिल द्वितीय पृथिवीमें स्थित हैं ॥ २५-२६ । तप्त, तपित, तपन, तापन, निदाघ, उज्ज्वल, प्रज्वल, संज्वलित और संप्रज्वलित ; ये नौ इन्द्रक बिल तृतीय पृथिवीमें स्थित जानना चाहिये ।। २७-२८ ।। आरा, मारा, तारा, चर्चा, तमकी, घाटा और घट ; ये सात इन्द्रक बिल चतर्थ पथिवीमें स्थित है।।२९।। तमका भ्रमका, झपका, अन्द्रा (अन्धा? )और तिमिश्रका:ये पांच इन्द्रक बिल पांचवों पृथिवीमें स्थित हैं । हिम, वादल और लल्लकी ये तीन इन्द्रक बिल छठी पृथिवीमें स्थित हैं । सातवीं पृथिवीमें अप्रतिष्ठान नामका एक ही इन्द्रक बिल स्थित है।३० ।। १५ स्तानिनिबोधितः । २ प तपनो। ३ आ प संजलितो । ४५ विज्ञेयो। www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Persona Jain Education International
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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